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Vishnu Chalisa: विष्णु चालीसा के पाठ से सुलझते हैं पारिवारिक झगड़े और करियर प्रॉब्लम्स, मिलते हैं अनेक लाभ

विष्णु चालीसा का नियमित पाठ अनेक लाभ देता है। यहां पढ़ें विष्णु चालीसा हिंदी में और इसके लाभ।

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भारत

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Adarsh Thakur

Dec 31, 2025

Vishnu Chalisa Lyrics In Hindi

Vishnu Chalisa Lyrics In Hindi: विष्णु चालीसा हिंदी में लाभ सहित। (फोटोः एआई)

Vishnu Chalisa Lyrics In Hindi: विष्णु चालीसा पाठ के लाभ जिंदगी बदल देने वाले हैं। माना जाता है कि, विष्णु चालीसा के नियमित पाठ से सुख, समृद्धि, धन, वैभव, पारिवारिक शांति और कई फायदे मिलते हैं। आज के इस लेख में पढ़िए, विष्णु चालीसा हिंदी में और इसके लाभ।

विष्णु चालीसा के लाभ

  • मानसिक शांति और भय व तनाव से मुक्ति मिलती है।
  • धन-समृद्धि और आर्थिक स्थिरता आती है। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
  • जीवन के कष्ट, बाधाएं और संकट दूर होते है।
  • पापों का नाश होता है और पुण्य मिलता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष मार्ग खुलता है।
  • करियर और कारोबार में तरक्की मिलती है।
  • परिवार में प्रेम, सुख और शांति का आगमन होता है।
  • शारीरिक व मानसिक रोगों से राहत मिलती है।

पाठ का शुभ समय: गुरुवार और एकादशी के दिन विशेष फल मिलता है।

पाठ का उद्देश्य: भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर जीवन को सुखमय और संकटमुक्त बनाने के लिए।

पाठ की विधिः सुबह स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं। पीले फूल, तुलसी दल, चंदन आदि अर्पित कर, एकाग्र मन से चालीसा का पाठ करें। फिर आरती कर प्रसाद बांटें। 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का जाप विशेष लाभ देता है।

विष्णु चालीसा हिंदी में | Vishnu Chalisa In Hindi

दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ।।

विष्णु चालिसा

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ।।सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ।।

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ।।

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ।।

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ।।

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ।।

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया।।

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया।।

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ।।

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ।।

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई।।

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी।।

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी।।

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे।।

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे।।

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ।।

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ।।

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ।।

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ।।

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै।।
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