1. क्रोध पर काबू रखें
गीता के अनुसार, व्यक्ति क्रोध में खुद पर नियंत्रण खो बैठता है और आवेश में आकर गलत कार्य भी कर देता है। क्रोध के वशीभूत होकर व्यक्ति की बुद्धि व्यग्र हो जाती है और उसे तर्क समझ नहीं आते। इसलिए अपना ही अहित करने से बचने के लिए व्यक्ति को क्रोध को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। वहीं अगर गुस्सा आए भी तो स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें।
2. आत्म मंथन और सकारात्मक सोच है जरुरी
भगवतगीता कहती है कि, हर मनुष्य को आत्म मंथन जरूर करना चाहिए। जब मनुष्य आत्मज्ञान की प्राप्ति करता है तभी वह अहंकार जैसे अवगुण से दूर रह पाता है। साथ ही सकारात्मक सोच का निर्माण भी व्यक्ति को उन्नति की ओर ले जाता है।
3. स्वयं का आंकलन करें
गीता में श्रीकृष्ण के अनुसार, एक व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता। इसलिए स्वयं का आंकलन करना भी बेहद आवश्यक है। जो मनुष्य अपने गुणों और कमियों को जान लेता है वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके हर काम में सफलता प्राप्त कर सकता है।
4. मन पर नियंत्रण
मन को बड़ा चंचल माना गया है। कई बार हमारा मन ही हमारे दुखों का कारण बन जाता है। जिस व्यक्ति ने अपने मन पर काबू पा लिया वह मन में पैदा होने वाली बेकार की चिंताओं और इच्छाओं से भी दूर रहता है। इससे व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलती है।
5. फल की इच्छा छोड़ कर्म पर ध्यान दें
मनुष्य कर्म करने से पहले ही उससे मिलने वाले परिणाम की चिंता में परेशान होता रहता है। गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश के अनुसार, मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है। इसलिए अपने कार्य पर ध्यान दें और उसे ही बेहतर बनाने का प्रयास करें।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)