
Laxmanbagh Temple rajbhog controversy rewa (फोटो- सोशल मीडिया)
Laxmanbagh Temple rajbhog controversy: रीवा राजशाही के जमाने का ऐतिहासिक लक्ष्मणबाग मंदिर संस्थान इन दिनों दुर्दशा का शिकार है। करीब 300 साल पहले स्थापित मंदिर परिसर में चार धाम के देवता विराजमान हैं, लेकिन नियमित राजभोग की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही।
अभी विजयादशमी पर भी मंदिर परिसर में विशेष सुविधा नहीं दी गई, जबकि इस संस्थान की आय लाखों में है। संस्थान की देशभर में 45 स्थानों पर हैं संपत्तियां, जिनकी जमीन से इतनी आय तो होती है कि भगवान को वर्ष के 365 दिन राजसी ठाठ से भोग लगाया जा सके, परंतु संस्था प्रबंधन ध्यान नहीं देता। (mp news)
इस मंदिर की स्थापना लगभग 300 वर्ष पहले रीवा शासक राजा विश्वनाथ सिंह ने की थी। स्वतंत्रता के बाद भी काफी समय तक इस मंदिर की शोभा देखते बनती थी। वर्ष 2005 में यहां महंत को पद से हटाकर कलेक्टर को प्रशासक बना दिया गया, तब से मंदिर निरंतर अव्यवस्थाओं से घिरा रहता है। पहले जहां रोजाना भजन-कीर्तन, तुलसी-चंदन की खुशबू और पकवानों की सुगंध से मंदिर महकता था, अब वहां सन्नाटा पसरा रहता है। (mp news)
लक्ष्मणबाग संस्थान की रीवा जिले के बाहर कई राज्यों में संपत्तियां हैं। 45 स्थानों पर अब भी मंदिर हैं। अधिकांश जगह मुकदमे चल रहे हैं, जिसकी वजह से वहां से आने वाला राजस्व रुक गया है। इसके बावजूद रीवा के चिरहुला मंदिर परिसर के साथ ही संभाग के विभिन्न हिस्सों में स्थित खेती के लिए भूमियों और बगीचों की नीलामी आदि से करीब 30 लाख रुपए हर साल आ रहे हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में करोड़ों रुपए की प्रॉपर्टी है। कुछ समय पहले ही उत्तराखंड के बद्रीनाथ में करीब सवा पांच करोड़ रुपए की भूमि बेची गई है। इसके बावजूद मंदिर में भगवान को भोग लगाने में कंजूसी की जा रही है। हर महीने दिया जाने वाला बजट जारी नहीं होने की वजह से समस्या उत्पन्न हो रही है। (mp news)
नाम न छापने की शर्त पर मंदिर के पुजारी बताते हैं, जब बजट आता है तब भी भगवान के भोग की थाली में दाल पानी जैसी पतली होती है। आलू की सब्जी के साथ जली रोटियों का भोग लगाया जाता है। यह हाल उस स्थान का है, जहां से कभी भजन-कीर्तन की गूंज, तुलसी और चंदन की खुशबू, और भोग की सौंधी सुगंध चारों ओर फैला करती थी।
मंदिर परिसर में एक नहीं, दो नहीं, पूरे बारह मंदिर हैं और हर मंदिर में प्रतिष्ठित हैं चार धाम के देवता। यहां राजतंत्र में जो राजसी ठाठ मंदिरों में देवताओं को मिले थे, वह सब अब गायब हो गए। मंदिरों में रखे बहुमूल्य आभूषण-बर्तन भी अब देखने को नहीं मिलते। (mp news)
मंदिरों में भगवान की सेवा के लिए पहले 12 पुजारी थे। इनकी संया घटकर अब 9 रह गई है। अव्यवस्थाओं के चलते ये पुजारी भी आए दिन परेशान रहते हैं। प्रबंधन की ओर से समय पर व्यवस्था न करने की स्थिति में भगवान को कभी-कभी लाई के भोग से ही संतोष करना पड़ता है।
बताते हैं कि संस्थान के सभी मंदिरों के लिए राशि जारी होती है, जो नियमित हर महीने मंदिरों तक नहीं पहुंच पाती। जब भी राशि पहुंचने में देरी होती है तो भोग आदि की व्यवस्था प्रभावित हो जाती है। संस्था की लाखों रुपए की आय से ही मंदिर में भगवान के लिए राजभोग, फूलमाला, अगरबत्ती, दियाबाती, मंदिर झूला और पोशाक आदि के लिए बजट तय होता है परंतु वह पूरा बजट मंदिर व्यवस्था में ही खर्च होता है, इस पर शंका है। (mp news)
मेरे संजान में मामला नहीं है। हर महीने भोग आदि की व्यवस्था की जाती है। संस्थान की जमीन की नीलामी से जो राशि प्राप्त होती है, उसे ही मंदिर की व्यवस्था में खर्च किया जाता है। पता करवाते हैं, व्यवस्था सुधारी जाएगी।
अनुराग तिवारी, प्रशासक, लक्ष्मणबाग संस्थान
Published on:
06 Oct 2025 12:18 pm
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