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रेलवे ने यात्री को दिया 1000 साल आगे का टिकट तो कोर्ट ने सुनाया यह फरमान

locationसहारनपुरPublished: Jun 13, 2018 05:43:02 pm

Submitted by:

sharad asthana

2013 में सहारनपुर से जौनपुर के लिए हिमगिरी एक्सप्रेस के एसी कोच में रेलवे काउंटर से कराया था रिजर्वेशन, यात्री को उस समय 3013 का टिकट दे दिया गया

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रेलवे ने यात्री को दिया 1000 साल आगे का टिकट तो कोर्ट ने सुनाया यह फरमान

सहारनपुर। रेलवे के रिजर्वेशन काउंटर से एक यात्री को 1000 साल आगे का टिकट दे दिया गया। यह मामला वर्ष 2013 का है। यात्री को उस समय 3013 का टिकट दे दिया गया। इसके बाद जब चलती ट्रेन में टीटीई चेकिंग के लिए आया तो उसने रेलवे की लापरवाही यात्री पर थोपते हुए टिकट को फर्जी बता दिया और यात्री को ट्रेन से नीचे उतार दिया। पांच साल तक पीड़ित ने रेलवे के इस कारनामे के खिलाफ आवाज उठाई।
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उपभोक्ता फोरम ने दिया ऐतिहासिक निर्णय

इस बीच यात्री पर भी फर्जी टिकट बनाने के आरोप लगते रहे लेकिन वह लगातार इस मामले की पैरवी करते रहे। अब पांच साल बाद सहारनपुर की एक उपभोक्ता फोरम ने इस मामले में ऐतिहासिक निर्णय दिया है। न्यायालय ने रेलवे की घोर लापरवाही बताते हुए यात्री को टिकट के पैसे ब्याज सहित लौटा ने अलावा 10000 रुपये मानसिक क्षतिपूर्ति और मुकदमे पर खर्च हुए 3000 रुपये लौटाने के आदेश दिए हैं।
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यह है पूरा मामला

सहारनपुर के प्रदुमन नगर निवासी रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर विष्णु कांत शुक्ला ने 2013 में सहारनपुर से जौनपुर के लिए हिमगिरी एक्सप्रेस के एसी कोच में रिजर्वेशन कराया था। ट्रेन जब लक्सर पहुंची ताे चेकिंग स्टाफ ने प्रोफेसर विष्णु कांत शुक्ला का टिकट चेक किया। इस पर वर्ष 2013 की जगह 3013 लिखा हुआ देखकर स्टाफ ने इसको फर्जी बता दिया। ट्रेन के मुरादाबाद पहुंचने पर प्रोफेसर को ट्रेन से नीचे उतार दिया गया। इसकी शिकायत प्रोफेसर ने रेलवे से की लेकिन कोई भी हल नहीं निकल सका। उल्टे प्रोफेसर पर ही यह आरोप लगाए गए कि उन्होंने फर्जी टिकट तैयार किया है। इसके बाद रिटायर्ड प्रोफेसर ने डीआरएम अंबाला और रेलवे के अन्य अधिकारियों को पार्टी बनाते हुए उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया।
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कोर्ट में पांच साल चला केस

यह मामला उपभोक्ता फोरम में पांच वर्ष तक चला। इस दौरान रेलवे की ओर से यह दलील पेश की गई कि संबंधित टिकट रेलवे से जारी नहीं हुआ है। किसी एजेंट ने फर्जी टिकट दे दिया होगा। इस दौरान यह भी कहा गया कि रिजर्वेशन काउंटर पर टिकट फॉर्म भरते हुए कोई त्रुटि हुई होगी। इस पर भी प्रोफेसर ने साफ कह दिया कि उनकी ओर से कोई भी त्रुटि नहीं की गई थी। इस पर रेलवे की ओर से यह दलील दी गई कि जब उन्होंने टिकट लिया था तो उसे चेक करना चाहिए था।
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नहीं माना रेलवे की दलीलों को

रेलवे की दलीलों को जिला उपभोक्ता फोरम ने व्यावहारिक नहीं माना। फोरम के अध्यक्ष लुकमान उल हक व सदस्य डॉक्टर सनत कौशिक की पीठ ने इसे रेलवे की गलती मानते हुए कहा कि एक वरिष्ठ नागरिक को रेलवे की ओर से परेशान किया गया है। उन्हें अपनी यात्रा बीच में ही रद्द करनी पड़ी जबकि वह अपने दोस्त की पत्नी के देहांत की सूचना पर यात्रा कर रहे थे। ऐसे में उन्हें मानसिक रूप से भी काफी कष्ट हुआ है। वरिष्ठ नागरिक होने के नाते उन्हें शारीरिक रूप से भी कष्ट उठाना पड़ा। उपभोक्ता फोरम ने इस मामले में रेलवे की घोर लापरवाही मानते हुए वरिष्ठ नागरिक को टिकट के पूरे पैसे ब्याज समेत लौटाने को कहा। साथ कोर्ट ने रेलवे को 10000 रुपये मानसिक और शारीरिक कष्ट के एवज में लौटाने के अलावा 3000 रुपये वाद व्यय की पूर्ति के रूप में लौटाने के आदेश दिए।
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फैसले से संतुष्ट हैं रिटायर्ड प्रोफेसर

रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर विष्णु कांत शुक्ला का कहना है कि वह इस फैसले से संतुष्ट हैं। उन्हें शुरू से ही यकीन था इंसाफ मिलेगा।कम से कम रेलवे को अपनी गलती का एहसास तो हुआ।

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