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उत्तर प्रदेश के मिरगपुर गांव में कोई नहीं खाता प्याज और लहसुन

देवबंद के मिरगपुर गांव में कोई नहीं खाता प्याज और लहसुन

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सुफयान अलवी/देवबंद. देवबंद तहसील क्षेत्र का गांव मिरगपुर अपनी विशेषता के लिए उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में अलग पहचान बनाए हुए है। गांव में ही बाबा फकीरादास की सिद्धकुटी मौजूद हैं। बाबा फकीरादास को ही सैकड़ों वर्ष पूर्व ग्रामीणों द्वारा दिए गए वचन को निभाने के लिए यहां आज भी कोई शख्स न तो मादक पदार्थों का इस्तेमाल करता है और न ही तामसिक खाद्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, लहसुन, प्याज आदि का सेवन नहीं करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि गांव का कोई व्यक्ति बाबा को दिए गए वचन को तोड़ता है तो उसके और परिवार के साथ अनहोनी घटना अवश्य होती है।

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इस्लामिक शिक्षा केन्द्र के लिए मशहूर देवबंद नगर से मात्र पांच किमी दूर स्थित गांव मिरगपुर में सदियों से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी पर श्री गुरू बाबा फकीरादास की सिद्धकुटी पर मेला लगता चला आ रहा है। इस मेले का गांव मिरगपुर में रहने वाले लोगों के खास महत्व है। इसके चलते इस दिन को गांव वाले किसी पर्व की तरह मनाते हैं। मान्यता है कि पंजाब के संगरूर क्षेत्र के गांव इंदरपुर में मस्तूराम किसान के यहां बाबा फकीरादास पैदा हुए थे। उन्होंने करीब पांच सो वर्ष पूर्व मुगल शासक जहांगीर के शासनकाल में गांव मिरगपुर आकर कठिन तपस्या की थी। सिद्धकुटी बाबा फकीरादास के महंत के अनुसार तपस्या के दौरान बाबा ने खुशहाल जीवन के लिए यहां के लोगों से मादक और तामसिक खाद्य पदार्थ मांस, मछली, लहसुन, प्याज व मदिरा आदि का सेवन न करने की प्रतिज्ञा कराई थी।

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गांव में रहने वाले सभी जातियों के लोग आज भी इस प्रतिज्ञा का पालन करते हुए मद्यपान और धुम्रपान से परहेज करते हैं। मिरगपुर के रहने वाले चौधरी कालूराम ने बताया कि श्री सिद्ध गुरू बाबा फकीरादास की इस एतिहासिक तपो भूमि पर लगने वाले मेले में दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु हलवा पूरी का प्रसाद चढ़ाकर अपनी मन्नतों की पूर्ति के लिए बाबा फकीरादास से प्रार्थना करते हैं। गांव में मेले के दिन मेहमानों के स्वागत को प्रत्येक घर में विशेष तैयारियां की जाती हैं। यह दिन उनके और इलाके के अन्य गांव वालों के लिए किसी पर्व से कम नहीं होता है।

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