4 महीने में तय किया 3742 किमी. का सफर
फर्राटेदार इंग्लिश में बात करते देख जब लोगों ने बुजुर्ग से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका नाम डॉ देव उपाध्याय है जो लंदन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एस्ट्रोनॉमी में पीएचडी किए हुए हैं और राकेट साइंस में कैल्कुलेशन का काम देखने वाले वैज्ञानिक हैं। इसके अलावा बायोलॉजी में भी सिद्धहस्थ हैं। वहीं उनके साथ चल रही उनकी पत्नी डॉ. सरोज उपाध्याय लंदन से साइकोलॉजी में पीएचडी हैं। उन्होंने बताया कि वो इस समय हिन्दुस्तान एक संकल्प के तहत धर्मयात्रा पर हैं। प्रतिदिन औसत 20 से 25 किलोमीटर पैदल चलते हैं। अब तक 3742 किलोमीटर का पैदल सफर कर चुके हैं और उनका यह क्रम 4 महीने दो दिन से चल रहा है।
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आंखों में नजर आना बंद हुआ
डॉ देव ने बताया कि जब वे अपनी कैंसर पीड़ित मां की लास्ट स्टेज में सेवा के लिए पहुंचे और उनके निधन के बाद जब भारत में रुके थे, उसी दौरान उनकी आंखों की रोशनी जाती रही। तब इलाज के पहले पत्नी ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की। काफी मुश्किल माने जाने वाला आपरेशन सफल रहा। उसके बाद से वे अपनी पत्नी के साथ देश के धर्मस्थलों की यात्रा पर निकल गए। उन्होंने कहा कि भारत एक संस्कारों में बंधा देश है जो परिवार को जोड़ता है। इसी खूबी से विदेश के लोग इस ओर रुचि दिखा रहे हैं। बताया कि अपनी पेंशन पूरी पेंशन नेत्रहीनों के लिये काम करने वाली संस्था को दे देते हैं। सिर्फ अपनी आय के 10 फीसदी हिस्से से अपना खर्च चलाते हैं।
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3 महीने की उम्र में मां की दोस्त ने लिया था गोद
डॉ देव ने बताया कि जब वे 3 महीने के थे तब उनकी मां की दोस्त ने उन्हें गोद ले लिया था और उन्हें लेकर इंग्लैंड चली गई थीं। इसके बाद ल्यूटोन में उन्होंने स्कूलिंग करने के बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। बचपन से खगोल विज्ञान में रुचि होने के कारण उन्होंने खगोल विज्ञान में ही पीएचडी की। इसी दौरान साइकोलॉजी से पीएचडी कर रही सरोज उपाध्याय से उनका परिचय हुआ और उनसे शादी कर ली। डॉ देव ने बताया कि वे वायु में मौजूद कणों के जरिये परिणाणु हथियारों की तीव्रता कम करने पर भी काम कर चुके हैं। साथ ही राकेट साइंस में भी बतौर वैज्ञानिक काम किया है। हालांकि गोपनीयता की शर्तों के कारण उन्होंने प्रोजेक्ट और स्थल का नाम सार्वजनिक नहीं किया। अपने कामकाजी दोस्तों में उन्होंने कल्पना चावला का नाम लेते हुए स्पेस में जाने से पहले हुई चर्चा का भी जिक्र किया। दक्षिण अफ्रीका में अपने एक प्रोजेक्ट के संबंध में बताया कि उस प्रोजेक्ट से मेडिकल साइंस को पैरालिसिस स्ट्रोक के संबंध में उपचार का रास्ता खुला था। जिस पर जीव विज्ञानियों की लैब ने आगे काम किया था।