
SATNA smart city: Nectar lake project stuck to save a mine
सतना. सतना के विकास को लेकर अफसरों में न रुचि है और न सक्रियता। जनप्रतिनिधियों को भी इससे कोई लेना-देना नजर नहीं आता। यही कारण है कि जितने भी बड़े प्रोजेक्ट हैं वे अफसरों की लापरवाही और अनदेखी का शिकार होते जा रहे हैं। अब स्मार्ट सिटी का एबीडी एरिया भी इसी अफसरशाही की अनदेखी का शिकार हो गया। इसका पहला बड़ा प्रोजेक्ट खटाई में जाता दिख रहा है। 20 करोड़ की लागत वाले नेक्टर झील प्रोजेक्ट को फिलहाल एक खदान के लिए रोक दिया गया है। इसकी तह में जाने पर पता चला कि जिम्मेदार विभाग के अफसर मामले में दो पेशियों में अपना पक्ष नहीं रख पाए। लालफीताशाही का दौर भी विकास के इस मेगा प्रोजेक्ट पर पड़ गया है, जबकि कलेक्टर खुद स्मार्ट सिटी के चेयरमैन हैं।
प्रोजेक्ट में होने थे 18 काम
शहर की नगर निगम सीमा से लगी सोनौरा, उतैली और सिजहटा में प्रस्तावित स्मार्ट सिटी का सबसे पहला प्रोजेक्टर था झील परियोजना। इसे आधिकारिक दस्तावेजों में नेक्टर लेक प्रोजेक्ट कहा जाता है। प्रोजेक्ट की लागत 20 करोड़ के लगभग है। डीपीआर के अनुसार इस प्रोजेक्ट में 18 काम होने थे। इसका केंद्र एक बड़ा जलाशय था। स्मार्ट सिटी में प्रोजेक्ट शुरुआत के पहले किए गए भौतिक सर्वे में पाया गया कि यहां की सरकारी जमीन के एक बड़े हिस्से में व्यापक पैमाने पर अवैध खनन है। लिहाजा, लैण्डस्केपिंग का काम काफी दुरुह होगा। ऐसे में ऐसी ड्राइंग तैयार की गई कि इन खदानों से ही स्मार्ट सिटी में एक खूबसूरती प्रदान की जा सके। प्लान किया गया कि इन खदानों के क्षेत्र में एक बड़ा जलाशय तैयार किया जाएगा और इसके आसपास का क्षेत्र भी इसी को ध्यान में रखते हुए स्थानीय पिकनिक स्पॉट के रूप में तैयार किया जाना था। यहां ओपन एअर थियेटर, जुलाजिकल पार्क सहित अन्य प्रोजेक्ट तो शामिल हैं ही साथ ही बघेलखण्ड आर्ट एण्ड क्राफ्ट सेंटर व नहर साइट डेवलपमेंट भी शामिल थे। अब यह प्रोजेक्ट हाशिये पर जा रहा है। सरकारी अफसरों के पैरवी नहीं करने के कारण उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी है।
इस कारण प्रोजेक्ट खटाई में
जहां पर नेक्टर लेक बननी है उसी क्षेत्र में एक लीज की भी खदान है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल होने के बाद इस इस लीज को निरस्त करने के लिए स्मार्ट सिटी की ओर से प्रस्ताव गया। इस आधार पर लीज निरस्त भी कर दी गई। इस पर खदान संचालक खनिज महकमे के डायरेक्टर के पास अपील में गया। वहां से खदान संचालक के पक्ष में डायरेक्टर ने फैसला दिया और निरस्त लीज को बहाल करने के निर्देश दिए। हालांकि यहां पर अफसरों ने व्यापक जनहित का पक्ष लिया और लीज बहाल नहीं होने दी, इसी बीच खदान संचालक उच्च न्यायालय चले गए और यहां से अफसरशाही खामोश हो गई। जिम्मेदार अफसरों ने समय पर इस मामले पर सक्रियता नहीं दिखाई और दो पेशियां मिलने के बाद भी जवाब नहीं दे सके। नतीजा, नेक्टर झील का मामला अभी ठंडे बस्ते में चला गया। अब इस प्रोजेक्ट के समय पर शुरू होने और न होने का मामला कलेक्टर के पाले में है। खनिज विभाग इस मसले पर क्या गंभीरता दिखाता है यह तो वक्त बताएगा लेकिन अगर इसी तरह तारीख पर तारीख खेलते रहे तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे प्रोजेक्ट का क्या होगा।
" अभी झील मामला न्यायालयीन वजह से रुका है। हमारी कोशिश है कि जल्द ही इसे निपटा लें।"
- अमनवीर सिंह, निगमायुक्त
" मामला न्यायालय में है। दो पेशियां हो चुकी हैं अभी जवाब नहीं दिया जा सका है। जवाब तैयार करवा रहे हैं।"
- दीपमाला तिवारी, जिला खनिज अधिकारी
Published on:
16 Dec 2019 12:48 am
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