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satna: मौत को सामने देखा, लगा बचूंगा नहीं…

दिन: शनिवार, तारीख: 28, महीना: अप्रैल, साल: 2023 ..... कैलेण्डर का यह लेख किशन जब तक जिंदा रहेगा तब तक नहीं भूलेगा। क्योंकि इसी दिन उसका मौत से सामना हुआ था। विडाल वंश का सबसे चौकन्ना जानवर तेंदुआ उसके सामने खड़ा था। इसके बाद क्या हुआ जानते हैं उनकी जुबानी....

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satna: मौत को सामने देखा, लगा बचूंगा नहीं...

satna: Saw death in front, thought I would not survive...

सतना। किशन श्रीवास्तव की पूरी कहानी जानने से पहले इतना जान लें कि मझगवां के जंगलों से विचरण करता हुआ तेंदुआ शहर के बीच दाखिल हो गया। मुख्त्यिारगंज मोहल्ले में चहलकदमी करते हुए एक घर तक पहुंच गया। सात घंटे तक इस इलाके में तेंदुए का राज रहा और पूरा मोहल्ला इस दौरान दहशत में रहा। हालांकि वन विभाग की टीम ने बमुश्किल उसे काबू किया। फिर ट्रैंकुलाइज कर अपने साथ ले गई। जिसे बाद में जंगल में छोड दिया गया। तो अब आते हैं किशन की कहानी पर जिसने खुद पर हुए हमले के दौरान तेंदुए से मुकाबला किया।

'' मैंने आज मौत को बिलकुल सामने देखा। तेंदुआ मेरे सामने था और पलक झपकी भी न थी कि उसने मुंह की ओर छलांग लगा ली। लगा बचूंगा नहीं। फिर भी कोशिश की। जिंदा हूं, पर अभी तक बहुत घबराया हुआ हूं। मैं पिता राजेश श्रीवास्तव और भाई अभिषेक श्रीवास्तव के साथ वोशजीव श्रीवास्तव के घर की साफ-सफाई के लिए गया था। घर के पिछले हिस्से से आवाज आ रही थी कि मोहल्ले में शेर आया, शेर आया। लेकिन हमने ध्यान नही दिया और अपने काम में लगे रहे। चार-पांच कमरों की साफ सफाई के बाद जब घर लौटने का समय आया तो मैं दूसरे कमरे में पंखे और लाइट बंद करने गया। वहां पहले से ही तेंदुआ बैठा था। कमरे के अंदर प्रवेश करते ही तेंदुए ने मुझ पर झपट्टा मार दिया। मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। इसके बावजूद बचाव में किसी तरह मैंने अपना बांया हाथ घुमाकर मारा तो हाथ उसके मुंह में घुस गया। तेंदुए ने दांत गड़ा दिए, तो मेरी चीख निकल गई। तेंदुए ने बाद में हाथ छोड़कर मेरे पैर के निचले हिस्से में दांत गड़ा दिए। मैं भी हाथ पैर मारता रहा, लेकिन तब तक शरीर में चार-छह जगह तेंदुए के दांत बुरी तरह गड़ चुके थे। मैं बचाव में इधर-उधर अपने हाथों से वार करता रहा, तब तेंदुए ने मुझे छोड़ दिया और सीढिय़ों के नीचे जाकर बैठक गया। मेरे पिता और भाई उस समय दूसरे कमरे में थे। मैंने भी खुद को कमरे के अंदर बंद कर लिया। कमरा बंद करने के बावजूद उस समय ऐसा लग रहा था कि अब इस तेंदुए के मुंह से बच भी पाऊंगा या नही। जब वन विभाग और पुलिस की टीम वहां पहुंची और मुझे व मेरे परिवार को बाहर निकाला, तब जाकर सांस में सांस आई।''

तीन घंटे बाद आया काबू

मुकुन्दपुर वाइट टाइगर सफारी से आई रेस्क्यू टीम को तेंदुए को काबू में करने में तीन घंटे लगे। उसकी पोजीशन लेकर उसे ट्रेंकुलाइज (बेहोश) करने के लिए शॉट लगाए जाते रहे। दोपहर करीब बारह बजे तेंदुए को एक शॉट लग पाया। इसके दस मिनट में वह बेहोश हो गया, तो टीम ने राहत की सांस ली। इस समय तक चारों तरफ भीड़ ही भीड़ थी। रेस्क्यू टीम ने तुरंत तेंदुए को उठाया और भीड़ के बीच से निकलकर रेस्क्यू वाहन में पिंजरे में डाला। स्वास्थ्य परीक्षण कर उसके रक्त के नमूने लिए गए। उसका ब्लडप्रेशर और तापमान भी मापा गया। इसके बाद उसे होश में लाने का इंजेक्शन देकर संजय गांधी नेशनल पार्क के समीप जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया।

दो माह पहले भी तेंदुए का मूवमेंट

जंगल से निकलकर वन्यप्राणियों का शहर की ओर रुख करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। करीब 2 महीने पहले शहर के महदेवा, राजेन्द्र नगर, बगहा और बरदाडीह क्षेत्र में तेंदुए की विचरण करते हुए सीसीटीवी कैमरे में तस्वीरें कैद हुई थी, लेकिन वन विभाग की पकड़ में तेंदुआ नही आ पाया था।