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बाघ के शिकार की रिपोर्ट तलब, दो टीम करेगी मौत की जांच

सरभंगा के जंगल में बाघ के शिकार का मामला: 6 सदस्यीय दल जांच में शामिल

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satna -tiger hunting

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सतना. सरभंगा के जंगल में डुडहा नाले के पास बाघ के शिकार के मामले को वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने गंभीरता से लिया है। घटना की विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है। उनके निर्देश पर दो जांच टीमें गठित की गई हैं। जो पूरे मामले के एक-एक पहलू की जांच करेंगी, साथ ही विभागीय जिम्मेदारी भी तय करेंगी। एक जांच टीम का नेतृत्व एसडीओ डीआर सिंह करेंगे, दूसरी टीम का नेतृत्व एसडीओ बीपी तिवारी करेंगे।

उल्लेखनीय है कि डुडहा नाले के पास रविवार रात को शिकारियों ने करंट लगाकर बाघ का शिकार किया था। इसकी खबर मिलने के बाद हड़कंप मच गया। आनन-फानन संदेहियों को हिरासत में लिया गया। साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में बाघ का पोस्टमार्टम कराते हुए सरभंगा नर्सरी में अंतिम संस्कार कराया गया। इसकी प्राथमिक रिपोर्ट सतना वन विभाग ने सीएफ के माध्यम से भोपाल को भेज दी थी। लेकिन, प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने प्राथमिक रिपोर्ट से असंतोष जताते हुए विस्तृत रिपोर्ट मांगी, साथ ही जांच टीम गठित करने को कहा। इसके बाद मंगलवार को जांच टीम गठित कर दिया गया है। हर टीम में 3-3 सदस्य को शामिल किया है। जो घटना से संबंधित साक्ष्य जुटाने के साथ-साथ विभागीय अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय करेंगे। साथ ही दूसरे दिन भी वन विभाग की टीम का सरभंगा क्षेत्र में डेरा रहा। जो मौके से साक्ष्य जुटाने व संदिग्धों से पूछताछ करने में लगी रही। कर्मचारियों से भी सवाल जवाब किए गए।

तीन बाघ अब भी संकट में

सरभंगा क्षेत्र में पन्ना की बाघिन का स्थाई डेरा है। जो अपने तीन शावकों के साथ टेरीटरी बनाए हुए है। मारा गया बाघ उसका ही शावक बताया जा रहा। इस तरह क्षेत्र में अब भी तीन बाघ हैं। इसके अलावा पन्ना टाइगर रिजर्व व रानीपुर वन्य अभ्यारण के बाघों का मूवमेंट भी रहता है। ऐसे में बाघों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल है। इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि वन विभाग की टीम बाघों की सुरक्षा को गंभीरता से नहीं ले रही है। उसके कुप्रबंधन स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है।


संसाधन व विशेषज्ञता का अभाव
सरभंगा क्षेत्र में स्थाई रूप से बाघों का डेरा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम के वापस जाने के बाद सामान्य वनकर्मियों के माध्यम से बाघों की निगरानी कराई जा रही है। बाघ के विशेषज्ञ नहीं हैं और ना ही स्थानीय वनकर्मियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। दूसरी ओर संसाधन का अभाव भी है। आलम यह है कि बाघों को न तो कॉलर आइडी पहनाई गई है, न ही उनकी लोकेशन पर ठोस ढंग से नजर रखी जाती है। वाहन आदि को लेकर भी लापरवाही बरती जाती है।

दो वनकर्मियों की भूमिका संदिग्ध

बाघ के शिकार के मामले में दो वनकर्मियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही। हालांकि, अभी अधिकारी सीधे कार्रवाई करने से पहले साक्ष्य जुटाने में लगे हुए हैं। ये दोनों कर्मचारी मझगवां वन परिक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। बाघ की निगरानी की जिम्मेदारी भी देखते रहे हैं।

घर से आधा किमी दूरी पर शिकार
वन विभाग की टीम ने तीन आरोपियों को शुरुआती दौर में ही गिरफ्तार कर लिया। इन लोगों के घर वारदात स्थल से करीब आधा किमी के दायरे में थे। बताया जाता कि डॉग स्क्वाड मौके पर पहुंचा, तो डॉग घटनास्थल से लगभग आधा किमी दूर रहने वाले राजेश मवासी के घर घुस गया। घर में राजेश भी मिला और उसके घर से सांभर की सींग बरामद हुई।

ऐसे किया था शिकार

आरोपियों ने शिकार के लिए नाले को चिह्नित कर रखा था। वहां वन्यजीव दिनभर पानी पीने के लिए आते रहे हैं। वहीं रात को संख्या बढ़ जाती रही है। इसलिए उन्होंने नाले की ओर जाने वाली झाडिय़ों में डेढ़ फीट के लकड़ी के खूंटे गाड़े थे। उसमें दो बार नंगी तार बांधकर करंट प्रवाहित कर दिया था। उसकी चपेट में बाघ आया और मारा गया।