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Mere Ram : चित्रकूट के ‘सिद्धा पहाड़’ पर श्रीराम ने ली थी राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा, अस्थियों के ढेर से बना है पर्वत

अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हो चुकी है। अपने घर अयोध्या के साथ ही देश के हर घर में राम आए हैं...। इस ऐतिहासिक और गौरवान्वित करने वाले पल ने भगवान श्रीराम के जीवन की सच्ची घटनाओं की कहानियां, किस्से और वनवास के दिनों की यादों को पंख दे दिए।

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सतना

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Astha Awasthi

Jan 28, 2024

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Shri Ram

सोशल मीडिया से लेकर बच्चों तक को श्रीराम के जन्म से लेकर राजा बनने, वनवास जाने और मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने की वजह बताई जा रही है। मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक पन्नों में धार्मिक महत्व के ऐसे कई स्थान हैं, जहां भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के साढ़े ग्यारह साल बिताए। आज हम आपको चित्रकूट में राम जी के सिद्धा पहाड़ की कहानी बताने जा रहे हैं.....

भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में अवश्य हुआ था किन्तु वनवास काल में उनकी अधिकांश लीलायें चित्रकूट में संपन्न हुईं, जहां राम मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम बने। राम अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे। अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहां से फिर राम ने आगे प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल राम के दर्शन की कामना से वहां निवास कर रहे थे। अतः राम के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया। आगे बढ़ने पर राम को स्थान-स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े, जिनके विषय में मुनियों ने राम को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों का वध कर डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियां हैं।

आपको बता दें कि रामचरित मानस में अरण्यकांड में उल्लेख है कि भगवान राम जब चित्रकूट से आगे की ओर बढ़े तो सिद्धा पहाड़ मिला। यह पहाड़ अस्थियों से बना था। वहीं पर राम जी को ऋषि-मुनियों ने बताया कि यहां राक्षस कई साधु संतो व ऋषि मुनियों को खा गए हैं और यह अस्थियां उन्हीं मुनियों की हैं, तो भगवान राम ने इसी स्थान पर राक्षसों के विनाश की प्रतिज्ञा ली थी। इसका उल्लेख तुलसीदास की चौपाइयों व दोहों में इस तरह है-

अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया।।
जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी।।
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए।।
निसिचर हीन करउँ महि, भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि, जाइ जाइ सुख दीन्ह।।

इसी जगह पर राम ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया, जहां पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। फिर राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया।