
रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में बाघों का दीदार, पत्रिका फोटो
Ranthambore Tiger Reserve: भले ही रणथम्भौर के बाघ-बाघिनों ने अब तक प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व को आबाद किया है। लेकिन वन विभाग की ओर से बाघों की नर्सरी के नाम से मशहूर रणथम्भौर टाइगर रिजर्व को बाघों के इंटरस्टेट ट्रांसलोकेशन में अनदेखा किया जा रहा है।
दरअसल, प्रदेश में पहला इंटरस्टेट ट्रांसलोकेशन किया जाना है, लेकिन इसमें वन विभाग और सरकार की ओर से रणथम्भौर को बिसरा कर कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व और बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में पांच बाघ-बाघिनों को शिफ्ट करने की अनुमति दे दी है, जबकि रणथम्भौर में भी लम्बे समय से इंटर स्टेट ट्रांसलोकेशन की मांग की जा रही है।
इंटर स्टेट ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया के तहत कुल पांच बाघ-बाघिनों को शिफ्ट किया जाएगा। तीन बाघिनों को रामगढ़ विषधारी और एक बाघ और एक बाघिन को कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में शिफ्ट किया जाएगा।
मशहूर बाघिन मछली यानी टी-19 की संतानें सबसे अधिक हुई थी। ऐसे में रणथम्भौर में मछली के वंश के बाघ-बाघिनों की संख्या सबसे अधिक है। ऐसे में यहां पर जैनेटिक डिसऑर्डर होने की आशंका सबसे अधिक है।
रणथम्भौर में बाघों की जेनेटिक विविधता को बनाए रखने के लिए तत्काल इंटर-स्टेट ट्रांसलोकेशन और वैज्ञानिक उपायों की जरूरत है। वन विभाग को इस दिशा में सक्रियता दिखानी होगी, ताकि बाघों का भविष्य सुरक्षित रहे।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल साइसेंस, बेंगलूरु ने 20 से अधिक टाइगर रिजर्व का दौरा कर बाघों के नमूनों का अध्ययन किया था।
इस स्टडी में राजस्थान में समान जीन पूल की समस्या सबसे गंभीर पाई गई। रिपोर्ट के अनुसार, समान जीन पूल वाले बाघ शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, उनकी शिकार करने और दौड़ने की क्षमता प्रभावित होती है, और उनकी संतानों की उम्र भी कम हो सकती है। यह समस्या बाघों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए बड़ा खतरा है।
इनका कहना है…
प्रदेश में पहला इंटर स्टेट ट्रांसलोकेशन जल्द किया जाएगा। इसके लिए महाराष्ट्र और एमपी से बाघ लाए जाएंगे। फिलहाल रामगढ़ विषधारी और मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघ-बाघिन को शिफ्ट किया जाएगा।
शिखा मेहरा, हॉफ, वन विभाग जयपुर
Published on:
01 Jul 2025 09:20 am
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