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शहडोल. हाथ-पैर से दिव्यांग होने के बावजूद वो मेहनत कर अपने परिवार का पालन पोषण करना चाहता है। नौकरी कर अपने बच्चों का भविष्य संवारना चाहता है लेकिन इसे सिस्टम की मार कहें या फिर उसकी किस्मत की अनदेखी कि वो बीते 10 साल से नौकरी की तलाश में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है। मामला शहडोल का है जहां जयसिंहनगर के ग्राम बसोहरा के रहने वाले दिव्यांग सियाशरण नौकरी की तलाश में लगातार 10 साल से हर सरकारी दफ्तर की चौखट पर जा रहे हैं। हाथ और पैर से दिव्यांग होने के बावजूद सियाशरण में शिक्षित होने के साथ ही काम करने का जज्बा आज भी कायम है।
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हाथ और पैर से दिव्यांग लेकिन इरादे मजबूत
दिव्यांग सियाशरण का एक हाथ और एक पैर काम नहीं करता है। कठिन परिस्थितियों और शारीरिक कमजोरी के वाबजूद सियाशरण का जज्बा कभी कम नहीं हुआ। कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद सियाशरण ने शिक्षा हासिल की और अब नौकरी की तलाश में लगातार जुटे हुए हैं। लेकिन दुखद पहलू यह है कि अफसरों और जनप्रतिनिधियों से दिव्यांग सियाशरण को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा है। सियाशरण का कहना है कि वो रोजगार की तलाश में रोजगार मेले में भी गए थे लेकिन वहां भी सिर्फ आश्वासन ही मिला।
2 साल तक अतिथि शिक्षक के तौर पर किया काम
सियाशरण गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में दो वर्ष तक अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाने का काम कर चुके हैं। जहां वह कक्षा पांचवी तक के बच्चों को बखूबी पढ़ाते थे। उनकी सहजता और सरलता के चलते स्कूली छात्र भी काफी रुचि से पढ़ते थे। दु:खद पहलू यह है कि अप्रैल 2010 में उन्हे स्कूल से बाहर कर दिया। जिसके बाद से सियाशरण लगातार रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अभी तक उन्हे कहीं भी ऐसा रोजगार नहीं मिला जिसके दम पर वह अपना व अपने परिवार का पेट पाल सकें। लेकिन नसीब में सिवा आश्वासन के कुछ नहीं आ रहा है और पूरा परिवार सियाशरण की विकलांगता पेंशन के भरोसे चल रहा है। पेंशन भी इतनी ज्यादा नहीं है कि पूरे परिवार का भरण पोषण अच्छे से हो सके। सियाशरण के दो बच्चे हैं वो चाहते हैं कि बच्चों का अच्छी शिक्षा दिलाएं।
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Published on:
06 Apr 2021 05:01 pm
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