
जल संघर्ष : 2 मील पैदल चलकर गड्ढे के पानी से प्यास बुझा रहे लोग, बोले- जो पानी लाएगा उसे करेंगे मतदान
शहडोल. जल मिशन योजना में अरबों रुपए खर्च कर भले ही सरकार द्वारा गांव-गांव शुद्ध पेयजल पहुंचाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन गांवों में अभी भी पानी के लिए हर दिन जंग लड़नी पड़ रही है। शहडोल संभाग के आदिवासी इलाकों में ग्रामीणो को 2 से 3 किलो मीटर पैदल चलने के बाद बाल्टीभर पानी नसीब होता है। सबसे खराब स्थिति पहाड़ी क्षेत्रों की है। यहां बोर न होने की वजह से दशकों बाद भी पानी की व्यवस्था नहीं बन सकी है। आदिवासी गड्ढे और झिरिया के दूषित पानी से प्यास बुझाने मजबूर हैं।
शहडोल-अनूपपुर की सीमा पर पहाड़ी क्षेत्र सरई पयारी गांव के ग्रामीण दशकों से गड्ढों से बूंद-बूंद रिसने वाले पानी से प्यास बुझा रहे हैं। पड़ोस की पंचायत तरंग से पेयजल टंकी बनाकर पानी सप्लाई की योजना बनाई थी, लेकिन गांव तक पानी पहुंचाने में विभाग नाकाम रहा है। शहडोल के ब्यौहारी के दाल गांव समेत मंडला और डिंडौरी के दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां गर्मी में पेयजल संकट बड़ा मुद्दा बन जाता है।
धूप में 2 किमी का सफर, छानकर पीते हैं पानी
अनूपपुर पयारी गांव के ग्रामीण बताते हैं, धूप में पानी के लिए दो किमी चलना पड़ता है। गड्ढों से निकलने वाले पानी में मवेशी बैठे रहते हैं, उन्हे हटाकर बाल्टीभर पानी मिलता है। दूषित पानी को छानकर पीने की मजबूरी है। एक दशक से ज्यादा समय से गांव में पेयजल संकट है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
पुष्पराजगढ़ सबसे ज्यादा प्रभावित, गड्ढे से निकाल रहे पानी
पुष्पराजगढ़ भीषण गर्मी में पेयजल की समस्या से सबसे प्रभावित है। जहां बोदा में स्थानीय ग्रामीणों को तालाब, नदी या हैंडपंप का पानी नहीं, बल्कि गड्ढे की खुदाई कर गंदे पानी से प्यास बुझाने मजबूर हैं। छिंदी टोला में 12 घरों में 48-50 सदस्यों की आबादी रहती है। यहां ग्रामीण गड्ढों के पानी से प्यास बुझा रहे हैं। हाल ही में एक हैंडपंप लगाया गया है लेकिन पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है।
22 बहु ग्राम योजनाओं को मंजूरी, इस वर्ष जारी किए 5117 करोड़
ग्रामीण आबादी को नल से जल कनेक्शन देने के लिए 22 बहु-ग्राम योजनाओं को मंजूरी दी गई थी। इन योजनाओं को प्रदेश के रीवा, सतना, सीहोर, सीधी, अलीराजपुर, बड़वानी, जबलपुर, पन्ना, मंडला, सागर, कटनी, धार, श्योपुर, उमरिया और खरगोन में शुरू की गई है। प्रदेश के 9240 गांवों के ग्रामीणों को इसका लाभ मिलेगा। 2023 तक सभी ग्रामीण घरों में नल के माध्यम से पेयजल सप्लाई करना है। वर्ष 2021-22 में मध्यप्रदेश के लिए 5,117 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसमें से 2,558 करोड़ रुपए 'हर घर जल' कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए मध्य प्रदेश को पूर्व में ही जारी किए जा चुके हैं।
सरकारी दावा: पहले 11 प्रतिशत आपूर्ति, अब 40 फीसदी से ज्यादा का दावा
भले ही ग्रामीण आबादी को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा हो लेकिन सरकारी दावे लाखों घरों तक कनेक्शन पहुंचाने का है। रेकार्ड के अनुसार, 15 अगस्त 2019 को जल जीवन मिशन के शुभारंभ के समय मप्र में 13.53 लाख (11 प्रतिशत) ग्रामीण घरों में नल से पेयजल की सप्लाई होती थी। लॉकडाउन की वजह से काम की रफ्तार कम हुई। हालांकि मप्र में 31.63 लाख (25.8 प्रतिशत) घरों में नल के पानी के कनेक्शन दिए गए। वर्तमान में 1.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में 45.16 लाख (36.93 प्रतिशत) के घर तक नल कनेक्शन दिया जा चुका है। 2021-22 में 22 लाख घरों तक कलेक्शन देने का लक्ष्य था।
क्या कहते हैं ग्रामीण?
-मजदूरी से ज्यादा जरूरी पानी भरना बना हुआ है
ग्रामीण श्यामकली का कहना है कि, पानी के लिए हर रोज पैदल चलना पड़ता है। मजदूरी से ज्यादा जरूरी काम पेयजल हो गया है। गड्ढों से पानी लाते हैं। पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। कोई सुनवाई भी नहीं हो रही है।
-गड्ढों का दूषित पानी पीना पड़ रहा है
ग्रामीण मंगलीबाई ने बताया कि, अधिकारी और जनप्रतिनिधि आते हैं, आश्वासन देकर चले जाते हैं। गांव में दशकों बाद भी पानी की व्यवस्था नहीं बन सकी है। बोर से भी पानी नहीं मिलता है। गड्ढों का दूषित पानी पीना पड़ रहा है।
-कई किमी पैदल चलना मजबूरी
ग्रामीण धन्नूलाल बैगा ने कहा कि, गड्ढे से सिर्फ बाल्टीभर पानी मिल पाता है। घर पहुंचते-पहुंचते प्यास इतनी लग जाती है कि, पानी खत्म हो जाता है। इस उम्र में भी पानी के लिए डिब्बे और बाल्टी लेकर पैदल कई किमी चलना पड़ रहा है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
इस भीषम जल संकट की स्थिति में सफाई देते हुए शहडोल संभाग कमिश्नर राजीव शर्मा ने कहा कि, जल मिशन से गांव-गांव पेयजल पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की समस्या है, यहां बोर कराकर वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जाएगी। अधिकारियों की टीम भेजेंगे।
Updated on:
20 Jun 2022 01:11 pm
Published on:
20 Jun 2022 01:06 pm
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