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‘हर’ पहुंचे ‘हरि’ के द्वार, सौंपा सृष्टि का कार्यभार, हरि-हर मिलन देखने बड़ी संख्या में पहुंचे भक्त

गाजे-बाजे से रथ में सवार होकर श्रीराधा-कृष्ण मंदिर पहुंचे ओंकारेश्वर महादेव। इस दौरान भक्तों ने जमकर आतिशबाजी भी की।

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'हर' पहुंचे 'हरि' के द्वार, सौंपा सृष्टि का कार्यभार, हरि-हर मिलन देखने बड़ी संख्या में पहुंचे भक्त

देवशयनी एकादशी से भगवान श्री हरि संपूर्ण सृष्टी का कार्यभार महादेव को सौंपकर योगनिद्रा में चले जाते हैं। हर साल ये योग निद्रा 4 महीने की होती है, लेकिन इस साल अधिकमास के चलते योगनिद्रा पांच महीने के बाद देव प्रबोधिनी एकादशी पर श्री हरि जागे। उन्हें सृष्टी का कार्यभार फिर से सौंपने के लिए महादेव अपने रथ में सवार होकर पहुंचे। इस अनूठे आयोजन के साक्षी बड़ी संख्या में मध्य प्रदेश के शाजापुरवासी बनें। वजीरपुरा स्थित श्रीराधा-कृष्ण मंदिर में ओंकारेश्वर महादेव अपने रथ में सवार होकर गाजे-बाजे के साथ पहुंचे और श्री हरि को सृष्टी का कार्यभार सौंपा।


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चार महीने तक विश्राम करने के बाद दीपावली के बाद आने वाली एकादशी पर भगवान विष्णु को फिर से जगाया जाता है। इसके बाद आने वाली चतुदर्शी जिसे बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन तक भगवान भोलेशंकर सृष्टी का कार्यभार सृष्टी के पालनकर्ता भगवान श्री हरि को सौंपकर कैलाश पर्वत चले जाते है। इसी मान्यता के आधार पर धानमंडी स्थित श्रीराधा-कृष्ण मंदिर में आयोजन किया गया। धानमंडी स्थित ओंकारेश्वर महादेव मंदिर से महादेव को रथ में विराजित कर सवारी निकाली गई, जो नगर के विभिन्न मार्गों से भ्रमण करते हुए वजीरपुरा स्थित मोढ़वणिक समाज के श्रीराधा-कृष्ण मंदिर पहुंची।

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बड़ी संख्या में शामिल हुए भक्त

पूरे नगर में ओंकारेश्वर महादेव का भक्तों ने पूजन किया गया। मंदिर पहुंचने पर यहां भगवान भोलेनाथ की ओर से श्रीकृष्ण को बिल्वपत्र की माला भेंट की गई। इधर, प्रभु श्रीकृष्ण की ओर से भोलेनाथ को तुलसी माला भेंट की गई। मान्यता है बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर चले जाते हैं। इससे पहले वे भगवान श्रीहरि को सृष्टि संभालने की जिम्मेदारी सौंपते हैं। हर साल होने वाले इस आयोजन के लिए इस बार भी पहले से ही तैयारियां कर ली गई थी। बड़ी संख्या में भक्त इस अनूठे आयोजन में शामिल होने दूर दूर से पहुंचे। इस दौरान भक्तों ने जमकर आतिशबाजी भी की।