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सात दशक बाद सिर्फ 11 हजार हेक्टेयर जमीन पर आई हरियाली, फसल उगाने में आ रही हो परेशानी तो यहां करें शिकायत

जिले में उपेक्षा का शिकार किसान

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Seven decades later, only eleven thousand hectares of land is green

If you are experiencing crop failure, please complain here

सिंगरौली/सीधी. ऊर्जाधानी का दर्जा हासिल इस पिछड़े व आदिवासी जिले के लिए आजादी के बाद के लगभग सात दशक का समय कोई विशेष राहतकारी नहीं रहा। यहां के आदिवासी व पिछड़े लोगों का जीवन स्तर बहतर बनाने के प्रयास के मामले में शासन व प्रशासन की चाल सिर्फ कदमताल जैसी दिखाई देती है। यहां की मूल आबादी को पिछड़ेपन से निकालने के लिए मात्र खानापूर्ति की हालत रही। इस कारण ही जिले की कृषि इन सात दशक में आज भी अधिकतर मानसून पर निर्भर है। आजादी के बाद की इस अवधि मेेें यहां कृषि व किसान को समृद्ध बनाने की दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं हुआ। इस अनदेखी का नतीजा है कि आज तक जिले की लाखों में से मात्र ११ हजार हेक्टेयर कृषि भूमि को ही सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम हो पाया है।

सिंचाई सुविधा को तरस गया अन्नदाता
इस आदिवासी जिले का अधिकतर भूभाग कोयले से दबा या पहाड़ से घिरा है और कृषि योग्य भूमि कुल क्षेत्रफल का काफी कम है। दुर्भाग्य से इस जिले की अधिकतर कृषि भूमि सिंचाई के लिए केवल वर्षा पर निर्भर है। मगर अधिकतर किसान पर्याप्त वर्षा नहीं होने के कारण केवल एक की सीजन में खेती कर पाता है और रबी सीजन मेंंं पानी नहीं होने के कारण अधिकतर जमीन सूखी रह जाती है। इस कारण गरीबी और पिछड़ापन यहां के अन्नदाता का पीछा नहीं छोड़ रहा मगर इससे निजात दिलाने के लिए शासन व सरकारी मशीनरी ने भी सात दशक मात्र कदमताल में गवां दिए। जिले में कृषि को बढ़ावा दिए जाने की अनदेखी का ही नतीजा है कि आज तक मात्र ११ हजार हेक्टेयर भूमि को ही सिंचाई के लिए एक सीजन में पर्याप्त पानी की व्यवस्था हो पाई है। इसके मुकाबले यहां का कुल कृषि क्षेत्र लाखों हेक्टेयर है और शेष रकबे का किसान केवल वर्षा के सहारे ही खेती कर रहा है।

किसान अब भी आशान्वित
आजादी के बाद इस जिले की बैढऩ, माड़ा व देवसर तहसीलों में सिंचाई के लिए छोटी व लघुश्रेणी की २७ परियोजनाएं बनी पर उनकी क्षमता बहुत कम थी। इस कारण ही पिछले लगभग पांच वर्ष से जिले का सिंचित क्षेत्रफल ११ हजार हेक्टेयर पर ही अटका है। इस अवधि में काचन जैसी मध्यम सिंचाई योजना भी लागू की गई मगर उससे भी मात्र ४२ सौ हेक्टेयर भूमि को ही कृषि के लिए पानी मिल सका जबकि शेष लगभग 80 प्रतिशत भूमि आज भी पानी को तरस रही है। इस स्थिति के कारण ही इस जिले की अधिकतर भूमि अब तक कृषि के लिए केवल वर्षा पर निर्भर रहने से बाहर नहीं आ पाई। यह जिले के किसान की शासन और प्रशासन के स्तर पर अब तक हुई अनदेखी का बड़ा उदाहरण है। इस निराशाजनक हालत के बीच हाल मेें मंजूर हुई गोंड व प्रक्रिया के अधीन रिहंद के पानी पर आधारित लिफ्ट सिंचाई परियोजना पर सरकार की सहमति जरूर कुछ अच्छे संकेत देती है। कृषि व जल संसाधन दोनों ही विभागों के अधिकारी अब किसानों के दिन फिरने को लेकर आशान्वित हैं।