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अपने बेटे के इलाज के लिए मां ने पार की हद, बेच दिया सबकुछ

locationसीकरPublished: Aug 12, 2018 04:30:32 pm

Submitted by:

Vinod Chauhan

सीकर. पति की मौत के बाद जवान बेटे की बीमारी की जकडऩ महसूस कर एक दृष्टिहीन मां ने उसका उपचार कराने की खातिर अपने सुहाग की अंतिम निशानी भी बेच दी है।

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अपने बेटे के इलाज के लिए मां ने पार की हद, बेच दिया सबकुछ

सीकर. पति की मौत के बाद जवान बेटे की बीमारी की जकडऩ महसूस कर एक दृष्टिहीन मां ने उसका उपचार कराने की खातिर अपने सुहाग की अंतिम निशानी भी बेच दी है। लेकिन, अब बेटे की इलाज की व्यवस्था नहीं देख पाना उसी मां के लिए परेशानी का सबब बन गया है। जबकि हरिजन बस्ती में रहने वाले महज 30 साल के शंकर की दोनों किडनी फेल हो चुकी हैं। फिर भी बुढ़ापे में यह बुजुर्ग मां शांति बेटे को ठीक होने के दिलासे में जुटी है।
जी हां, मुफलिसी में भी बीमारी की पीड़ा झेलने वाले ये दो मां-बेटे आर्थिक तंगी से भी जंग लड़ रहे हैं। शादी-शुदा शंकर की इस छोटी सी उम्र में दोनों किडनी खराब हो चुकी है। जिंदा रहने के लिए हर सात या १५ दिनों से डायलिसिस करानी पड़ती है। जिसके बाद शंकर कुछ दिन आराम से निकाल पाता है। दोनों को सहारा देने के लिए अभी बस्ती के लोग और परिजन ही भोजन आदि की व्यवस्था जुटाकर दे रहे हैं। क्योंकि बुढ़ापे का सहारे का निजी अस्पताल में किडनी के लिए डायलिसिस कराना बूते में नहीं है और सरकारी में पांच दिन के इंतजार बाद उपचार खातिर नंबर आने की बात कही जा रही है। ६५ वर्षीय शांति देवी का कहना है कि पति की मौत के बाद बड़ा बेटा और एक बेटी को बीमारी में खो चुकी हूं। शंकर को इलाज के बदले खोना नहीं चाहती। इसलिए शादी में मिले कंगन, चांदी की पाजेब सब बेच दी। ताकि उसका शंकर ठीक हो सके। अब इलाज के पैसे नहीं हैं। दिन-रात यही चिंता खाए जाती है कि इसका क्या होगा। क्योंकि थोडे़ दिन पहले ही शंकर का एक मासूम लडक़ा करंट लगकर खत्म हो चुका है।
मदद की आस
अखिल भारतीय वाल्मिकी नवयुवक मंडल संघ के जिलाध्यक्ष विक्रम कुमार लखन का कहना है कि शांति देवी के कुछ परिजन व बस्ती के लोग इनकी देखरेख अपनी क्षमता के तहत कर रहे हैं। उसके ससुराल वालों ने भी मदद की है। लेकिन, अब दोनों मां-बेटों की हालत खराब होती जा रही है। समाज के अलावा प्रशासन को भी इनकी मदद की सुध लेनी चाहिए।
कर्जा भी भोगा
शंकर के अनुसार उसकी मां देख नहीं पाती है। लेकिन, दिलासा हमेशा ठीक होने का देती है। हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि नियमित इलाज नहीं मिलने पर कुछ भी हो सकता है। सरकारी अस्पताल में उपचार के लिए पांच-छह दिन इंतजार का समय दिया जा रहा है। इससे कुछ सालों पहले वह साफ-सफाई कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा था। किडनी का उपचार कराने के लिए डेढ़ दो लाख रु. का कर्जा भी भोग चुके हंै।
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