
Rajasthan Assembly Election 2023 : पश्चिमी राजनीतिक विचारक अरस्तु ने शिक्षा व क्रांति को राजनीतिक विकास का अहम आधार बताया था। जिले का कूदन गांव इसी विचार को साकार कर रहा है। जहां 1935 के सबसे बड़े किसान आंदोलन व शिक्षा की अलख ने गांव को राजनीतिक आकाश पर पहुंचा दिया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1952 से अब तक के 15 विधानसभा चुनाव में से 14 चुनाव में गांव के एक या दो प्रत्याशी जरूर मैदान में उतरे हैं। इस छोटे से गांव के अब तक 23 उम्मीदवारी में से 11 चुनावी जंग भी जीतकर विधानसभा की दहलीज पर पहुंच चुके हैं। उम्मीदवारी के इस अनूठे रिकॉर्ड को इस बार भी गांव के महरिया बंधु कायम रख रहे हैं। वे जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनावी समर में भाग्य आजमा रहे हैं।
6 प्रत्याशी दिए,11 बार बने विधायक: कूदन गांव विधानसभा में अब तक छह प्रत्याशी दे चुका है। उन्होंने 23 बार भाग्य आजमाकर 11 चुनावों में जीत दर्ज की है। सबसे ज्यादा 12 चुनाव लड़कऱ रामदेवसिंह महरिया सात बार विधानसभा में पहुंचे और मंत्री भी बने। रामचंद्रसिंह सुंडा तीन में से दो बार और झाबर सिंह तथा नंदकिशोर महरिया तीन-तीन में से एक- एक चुनाव जीत चुके हैं। एक- एक विधानसभा चुनाव लड़ऩे वाले गणेशराम व सुभाष महरिया ही विधानसभा की दहलीज से दूर रहे हैं। हालांकि सुभाष महरिया तीन बार लोकसभा चुनाव जीते व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।
तीन दशक तक सुंडा व महरिया से पहचान: गांव के राजनेताओं की स्थानीय से लेकर राज्य की राजनीति में पहचा रही है। राजनीति में कूदन के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1960 से 80 के दशक तक ग्रामीण राजनीतिक दलों की पहचान रामदेवसिंह महरिया, रामचंद्र सुंडा व झाबरसिंह के नाम से करते थे। गांव में लोग सुंडा व महरिया पार्टी के नाम से इनके दलों को पुकारते थे।
इस बार दो प्रत्याशी: इस बार हो रहे 15 वीं विधानसभा के चुनाव में भी कूदन गांव निवासी सगे भाई सुभाष महरिया व नंदकिशोर महरिया ने चुनावी ताल ठोक दी है। सुभाष को भाजपा ने लक्ष्मणगढ़ से उम्मीदवार बनाया है। छोटे भाई नंदकिशोर महरिया ने चौटाला की जनता जननायक पार्टी (जेजेपी) से मैदान में ताल ठोकी है।
शिक्षा व किसान आंदोलन की धरती: कूदन की राजनीतिक चेतना में किसान आंदोलन व शिक्षा की अहम भूमिका रही है। शिक्षाविद् दयाराम महरिया ने बताया कि ब्रिटिश संसद तक चर्चा का विषय रहा 1935 का किसान आंदोलन कूदन की धरती पर ही हुआ था। इसमें गांव के 57 स्वतंत्रता सेनानी जेल भी गए। शिक्षा में अग्रणी रहने पर सरकार ने 1959 में ही गांव में हायर सैकंडरी स्कूल खोल़ी थी। इसकी बदौलत गांव के कई लोग उच्च पदों तक पहुंचे। मौसर जैसी प्रथाएं सात दशक पहले छोड़ी जा चुकी है। ऐसे में गांव सामाजिक, शैक्षिक व राजनीति का गढ़ कहा जाता है। रियासती भारत के जाट जनसेवक पुस्तक में ठाकुर देशराज ने 1949 में लिखा था कि कूदन सीकर जाटों का पेरिस है।
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अब तक ये लड़े चुनाव
| चुनावी वर्ष | प्रत्याशी नाम | पार्टी | विधानसभा क्षेत्र | परिणाम |
| 1952 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | सीकर | हार |
| 1957 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | सिंगरावट | जीत |
| 1957 | गणेश राम | सीपीआई | सीकर | हार |
| 1962 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | कांग्रेस सिंगरावट | जीत |
| 1962 | रामचंद्र सिंह | कांग्रेस | श्रीमाधोपुर | जीत |
| 1967 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | सीकर | जीत |
| 1967 | रामचंद्र सिंह | निर्दलीय | खंडेला | जीत |
| 1972 | झाबर सिंह | आईएनसी | फतेहपुर | जीत |
| 1972 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | सीकर | हार |
| 1977 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | जीत |
| 1977 | झाबर सिंह | कांग्रेस | खंडेला | हार |
| 1980 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | जीत |
| 1980 | रामचंद्र सिंह | निर्दलीय | सीकर | हार |
| 1985 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | जीत |
| 1990 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | जीत |
| 1993 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | हार |
| 1998 | रामदेव सिंह | कांग्रेस | धोद | हार |
| 2003 | झाबर सिंह | एनसीपी | सीकर | हार |
| 2003 | रामदेव सिंह | निर्दलीय | धोद | हार |
| 2003 | नंदकिशोर महरिया | भाजपा | फतेहपुर | हार |
| 2008 | नंदकिशेार महरिया | भाजपा | फतेहपुर | हार |
| 2013 | नंदकिशोर महरिया | निर्दलीय | फतेहपुर | जीत |
| 2013 | सुभाष महरिया | भाजपा | लक्ष्मणगढ़ | हार |
Published on:
03 Nov 2023 11:16 am
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