जानकारी के अनुसार सीकर के नाथूसर निवासी लोकेंद्र सिंह (26) और पंजाब के फिरोजपुर निवासी मुख्तियार सिंह (38) रविवार तड़के करीब 3 बजे 114वीं बटालियन के अन्य जवानों के साथ गश्त से लौट रहे थे। इस दौरान नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी। करीब आधा घंटे तक सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। जवानों को भारी पड़ता देख नक्सली फरार हो गए।
वर्ष 2011 में हुए थे भर्ती
शहीद लोकेन्द्र सिंह की पार्थिव देह सोमवार सुबह साढ़े दस बजे गांव नाथूसर पहुंची। लोकेन्द्र सिंह मई 2011 में बीएसएफ में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुए थे। वर्तमान में वह छतीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में बीएसएफ की 175 वीं बटालियन में तैनात थे। लोकेंद्र की तीन साल पहले ही शादी हुई थी।
लोकेंद्र के बेटे के जडूला उत्सव की तैयारियां रोकी
लोकेन्द्र सिंह के घर पर उसके छह माह के बेटे दक्ष प्रताप सिंह के जडुला उत्सव को लेकर तैयारियां चल रही थी। घर परिवार के लोग घर पर मिठाइयां बनाकर मऊ के भैरव जी मन्दिर में जडुला उतारने जाने वाले थे, लेकिन इस खबर के बाद घर के बड़े बुजुर्गों ने उत्सव की तैयारियों को रोक दिया। मां कैलाश कंवर, पिता महेंद्र सिंह व पत्नी अन्नू को लोकेन्द्र के पैर में गोली लगने से घायल होने का समाचार ही दिया गया।
सिर्फ बड़ों को खबर
घर के बड़ों को लोकेंद्र की शहादत की खबर थी, लेकिन मां, पत्नी और बच्चे इससे बेखबर थे। उन्हें यह बताया गया कि लोकेंद्र के पांव में गोली लगी है। घर में उत्सव का कार्यक्रम चल रहा था, लेकिन बाद में उसे स्थगित कर दिया गया। तीन साल पहले ब्याह कर आई लोकेंद्र की पत्नी अन्नू कंवर भी इससे बेखबर थी कि उसका पति शहीद हो गया।
तीन साल पहले हुई थी शादी
लोकेन्द्र सिंह की तीन साल पहले परबतसर नागौर के आसरवा गांव की अन्नू कँवर के साथ शादी हुई थी। लोकेन्द्र सिंह के एक बड़ा भाई कुलदीप है जो निजी वाहन चालक है। पिता घर पर खेती का काम करते है। लोकेन्द्र की माता कैलाश कंवर करीब एक साल से बीमार है।
गांव का पहला शहीद
भारतीय सेना व अद्र्ध सैनिक बलों में गांव के सैकड़ों जवान विभिन्न पदों पर सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं वही सैकड़ों युवा सेवारत हैं। उनमे से बहुत से सैनिक भारत-चाइना, भारत पाक व कारगिल की लड़ाइयां लड़ चुके हैं, लेकिन कभी कोई शहीद नहीं हुआ। लोकेंद्र गांव का पहला शहीद बेटा है।