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राजस्थान के इस प्रसिद्ध जैन मंदिर में उमड़ा देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का सैलाब, संगमरमर की नक्काशी देखकर हुए अभिभूत

श्वेत संगमरमर के पाषाणों से निर्मित मंदिर की छतों, गुंबदों, तोरणद्वारों की अलंकृत नक्काशी और नायाब शिल्पकला की झलक बरबस ही श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

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देलवाड़ा जैन मंदिर (फोटो: पत्रिका)

अरावली पर्वत शृंखला की उच्चतम चोटी गुरुशिखर की गोद में स्थित विश्व विख्यात देलवाड़ा जैन मंदिर में देश-विदेश से हजारों लोग पर्युषण पर्व पर आराधना एवं दर्शनार्थ आ रहे हैं। करीब एक हजार वर्ष प्राचीन एवं अद्भुत शिल्प कलाओं का बेजोड़ नमूना देलवाड़ा जैन मंदिर दर्शकों के मानस पटल पर एक अलग ही छाप छोड़ रहा है।

श्वेत संगमरमर के पाषाणों से निर्मित मंदिर की छतों, गुंबदों, तोरणद्वारों की अलंकृत नक्काशी और नायाब शिल्पकला की झलक बरबस ही श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

जानकारों के अनुसार यहां से करीब 50 किलोमीटर दूर गुजरात के प्रसिद्ध धार्मिक शहर अंबाजी के निकट आरासूरी की पहाड़ियों से मंदिर में प्रयुक्त संगमरमर हाथियों पर लादकर लाया गया। मंदिर में जैन तीर्थंकरों की 57 देहरियों में मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें जैन तीर्थंकरों के अतिरिक्त मां सरस्वती, लक्ष्मी, अंबा के साथ नृसिंह अवतार के हिरण्यकश्यप वध, कालिया दमन, शेषनाग की शैय्या की भी मूर्तियां स्थापित हैं। 1237 में मंदिर में दस संगमरमर के हाथियों की मूर्तियां और स्थापित की गई, जिनमें प्रत्येक हाथी पर महावत व उसके पीछे छत्रधर की मूर्तियां अंकित हैं। मंदिर की देखरेख सेठ कल्याणजी परमानंदजी ट्रस्ट सिरोही की ओर से की जा रही है।

यहां का शिल्प कौशल अद्वितीय


शिल्प सौन्दर्य की सूक्ष्मता, अलंकर्ण की शिष्टता, गुंबदों की छतों पर स्फटिक बिंदुओं की भांति झूमते कलात्मक पिंड, शिलापट्टों पर उत्कीर्ण पशु, पक्षियों, वृक्षों, लताओं, पुष्पों आदि की आकृतियां किसी भी कलाप्रेमी दर्शक के लिए आश्चर्यचकित करने वाली दिख रही। यहां की वास्तुकला, शिल्प कौशल अद्भुत ही नहीं अद्वितीय भी है। यहां पांच जैन श्वेतांबर मंदिर विमलवसही, लूूणवसही, महावीर स्वामी, पितलहर व पार्श्वनाथ के मंदिर हैं।

1200 श्रमिकों ने तैयार किया मंदिर

मंदिर परिसर में उपलब्ध शिलालेखों के अनुसार 140 फीट लंबे 90 फीट चौड़े भूखंड पर वर्ष 1031 ईस्वी में 1500 शिल्पियों व 1200 श्रमिकों के 14 वर्ष के अथक प्रयास से 18.53 करोड़ रुपए की लागत से इस भव्य मंदिर का निर्माण किया।

आदिनाथ का करेंगे आंगी शृंगार

प्रबंधक गोवर्धन सिंह के अनुसार पर्युषण पर्व में सुबह-शाम नित्य पूजा हो रही है। आकर्षक सजावट की जाएगी। समापन पर भगवान आदिनाथ का आंगी शृंगार किया जाएगा। भगवान महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक पर्व पर भी शृंगार होगा।

माउंट आबू शहर से करीब ढाई किमी दूर गुरुशिखर मार्ग पर यह मंदिर है। आबूरोड तक रेल सुविधा उपलब्ध है। यहां से माउंट आबू मार्ग पर करीब 27 किमी की चढ़ाई पूरी कर माउंट आबू पहुंचते हैं, जबकि सिरोही जिला मुख्यालय से आबूरोड मार्ग पर तलहटी होते हुए करीब 100 किमी दूर है।