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राजस्थान का अनोखा शिव मंदिर: 84 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है वह शिवलिंग, जिसे ग्वाले के वेश आए भगवान विष्णु ने किया था स्थापित

Rajasthan Unique Shiva Temple: राजस्थान में सिरोही जिले के मंडार कस्बे में चहुंओर हरियाली से आच्छादित पहाड़ी पर स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर देशभर के भक्तों की आस्था का केंद्र है।

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सिरोही में 84 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर। फोटो: पत्रिका

Leeladhari Mahadev Temple: सिरोही। राजस्थान में सिरोही जिले के मंडार कस्बे में चहुंओर हरियाली से आच्छादित पहाड़ी पर स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर देशभर के भक्तों की आस्था का केंद्र है।

यहां पहाड़ी की चोटी पर 84 फीट ऊंचा स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। ऊंचाई अधिक होने से अब तक मात्र दो बार संपूर्ण शिवलिंग का अभिषेक हुआ है। इसके तल को ही पूजा जाता है।

मान्यता है कि शिवलिंग समेत पूरी पहाड़ी को भगवान विष्णु ने अपने हाथों से ग्वाले के रूप में आकर स्थापित किया था। इसका उल्लेख पुराणों में भी बताया जाता है। ऐसे में पूरी पहाड़ी को ही पवित्र मानते हैं।

ग्वाले के वेश में आए थे भगवान विष्णु

किवदंती के अनुसार लंकापति रावण महादेव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। रावण की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए औ कहा कि क्या वरदान चाहिए। रावण ने कैलाश पर्वत स्थित मंदा शिखर को ले जाकर लंका में स्थापित करना चाहा तो शिवजी ने कहा- तथास्तु। रावण जब मंदा शिखर को हाथों में उठाकर ले जाने लगा तो देवताओं में खलबली मच गई। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने इंद्र के पास जाने की सलाह दी। देवताओं के आग्रह पर इंद्र ने रावण को लघुशंका के लिए आतुर किया।

उस दौरान मंदिर स्थल पर भगवान विष्णु ग्वाले का रूप धारण कर गाय चरा रहे थे। रावण की दृष्टि पड़ी तो ग्वाले से कहा, मैं तुझे अपार शक्ति देता हूं। इस पर्वत को धारण कर। यह कहकर ग्वाले के हाथ में मंदा शिखर थमा दिया। रावण थोड़ी दूर जाकर लघुशंका कर लौटा तो भगवान उसी स्थान पर मंदा शिखर स्थापित कर चले गए थे। इसके बाद रावण को वहां से निराश लौटना पड़ा था। बताया जाता है कि मंडार का नाम भी मंदा शिखर से मंदा, मदार और मडार से अपभ्रंश होकर मंडार हुआ है।

आमलकी ग्यारस को भरता है मेला

यहां राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र सहित समूचे भारतवर्ष से श्रद्धालु आते हैं। श्रावण मास में भक्तों की भीड़ रहती है। महाशिवरात्रि पर्व के बाद फाल्गुन शुक्ल ग्यारस यानी आमलकी ग्यारस को लीलाधारी महादेव का मेला भरता है, जिसमें हजारों लोग पहुंचते हैं। दर्शन व पूजा के बाद चंग की थाप पर जमकर नृत्य भी करते हैं।