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इस अन्नदाता ने 35 साल से नहीं खाया अन्न, केवल फल-सब्जियां खाकर चला रहे हैं जिन्दगी

locationसिरोहीPublished: Jul 07, 2018 10:39:04 am

– जिस दिन किसान को उपज का सही दाम मिलेगा उस दिन हो सकता है अन्न ग्रहण कर लूं

sirohi Kisan Somaram

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देशाराम मेघवाल/ सिरोही. जिला मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित पालड़ी आर गांव के एक किसान सोमाराम भगत ने पिछले 35 साल से अन्न त्याग कर रखा है। यानी इन्होंने इस लम्बी अवधि में गेहूं, बाजरा, चावल समेत तमाम तरह का अन्न ग्रहण नहीं किया है। भगत ने 37 साल की उम्र में अन्न छोड़ा था और आज इनकी आयु 72 की हो गई है। वे बताते हैं कि इस दौरान उन्हें कभी अस्पताल का मुंह नहीं देखना पड़ा है। यानी कभी बीमार नहीं हुए। पहले की तुलना में अब अधिक स्वस्थ हैं।
अन्न छोडऩे के पीछे की कहानी
जैसा कि सोमाराम भगत बताते हैं कि अन्न छोडऩे का निर्णय ऐसे ही नहीं किया। ‘मेरी मां ने मौत से एक दिन पहले कहा था कि अब अनाज नहीं मिलेगा। यानी किसान को उपज का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। बस फिर क्या था। मैंने मां की मौत के बारहवें दिन ही अन्न ग्रहण करना बंद कर दिया और पिछले 35 साल से बिना अन्न खाए आपके सामने हूं। जिस दिन किसान को सही दाम मिलेगा, उस दिन हो सकता है अन्न ग्रहण कर लूं। पता नहीं वह दिन कब आएगा।’
परिवार की जिम्मेदारी
भगत की जिन्दगी सब्जी और फल के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है। ये लौकी, ककड़ी समेत तमाम तरह की मौसमी सब्जी और फल खाते हैं। सोमाराम के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी भी है। इनके परिवार में पत्नी नवूदेवी व तीन बेटे हैं। बेटे और पत्नी अन्न ग्रहण करते हैं। इनकी आठ बीघा जमीन है जहां बुवाई करते हैं और उससे मिलने वाली आमदनी से परिवार का पालन करते हंै। आजकल इन्होंने खेत में नींबू के पौधे लगाए हैं। ये जीरा-गेहूं, सरसों और अरण्डी की खेती भी करते हंै।
कभी बाल-दाढ़ी नहीं बनाई
बकौल सोमाराम- इन वर्षों में कभी बाल-दाढ़ी तक नहीं बनाई। चप्पल तक नहीं पहनते हैं। यानी नंगे पांव ही रहते हंै। इन्होंने अपने गुरु महाराज की समाधि स्थल पर बगीचा तैयार किया है जो यहां आने जाने वाले लोगों को सुकून देता है।
चिकित्सक कहिन…
फलाहार और सब्जी से अनाज की पूर्ति हो जाती है। यह सबसे अच्छा आहार माना जाता है। इससे व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है।
– डॉ. दिनेशकुमार राठौड़, राजकीय चिकित्सालय, सिरोही

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