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थल सेनाध्यक्ष ने नग्गी वार मेमोरियल में शहीद सैनिकों को दी श्रद्धांजलि, बोले- शहीद स्मारक तक बने पक्की सड़क

थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी (पीवीएसएम एवीएसएएम) भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास बने नग्गी वार मेमोरियल पहुंचे।

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Photo- Patrika Network

राजस्थान के श्रीगंगानगर में थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी (पीवीएसएम एवीएसएएम) गुरुवार को भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास बने नग्गी वार मेमोरियल पहुंचे और वहां 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए सैन्य अधिकारियों और जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ऑपरेशन सिंदूर के चलते थल सेनाध्यक्ष पाकिस्तान से लगती सीमा पर उन स्थानों का दौरा कर रहे हैं, जहां भारतीय सेना के पराक्रम और शौर्य के कारण दुश्मन को मुंह की खानी पड़ी। यह कार्यक्रम सेना की चेतक कोर ने आयोजित किया था।

थल सेनाध्यक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सेना और पुलिस के साथ समन्वय रखते हुए नागरिक सुरक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं करने तथा महत्वपूर्ण सूचनाओं का तत्परता से आदान-प्रदान करने पर जिला कलक्टर डॉ. मंजू को बैज देकर समानित किया। थल सेनाध्यक्ष ने कहा कि भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के नजदीक होने से श्रीगंगानगर काफी संवेदनशील था, लेकिन सेना और प्रशासन के तालमेल से दुश्मन अपनी किसी भी योजना में सफल नहीं हुआ। प्रशासन की सूझबूझ से सीमा क्षेत्र से नागरिकों का पलायन भी नहीं हुआ।

वार मेमोरियल पर अर्पित किए पुष्प चक्र

उन्होंने ऑपरेशन में सेना की मदद करने वाले नागरिकों को भी समानित किया। सशस्त्र बलों, प्रकृति संरक्षण और राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय योगदान के लिए उन्होंने कर्नल सतपाल राय गब्बा (सेवानिवृत्त), लेटिनेंट कर्नल जगजीत सिंह मान (सेवानिवृत्त), सीएफएन बनवारी लाल स्वामी (सेवानिवृत्त) और सूबेदार मेजर (ऑनरेरी कैप्टन) और शीश राम (सेवानिवृत्त) को समानित किया।

थल सेनाध्यक्ष द्विवेदी सुबह सवा सात बजे हेलीकॉप्टर से नग्गी वार मेमोरियल पहुंचे। उनके साथ सेना के कई उच्चाधिकारी थे। वार मेमोरियल पर पुष्प चक्र अर्पित करने के बाद उन्होंने सेना और बीएसएफ के अधिकारियों से अन्तरराष्ट्रीय सीमा के हालात पर चर्चा की। उन्होंने सेना के सभी रैंकों से नवीनतम तकनीकी प्रगतियों, उभरते सुरक्षा खतरों से अवगत रहने तथा ऐसे खतरों से निपटने के लिए सदैव तैयार रहने का आह्वान किया। कार्यक्रम में प्रशासन व पुलिस के कई अधिकारी मौजूद रहे।

वार मेमोरियल का इतिहास

भारत-पाक के बीच 1971 में हुए युद्ध के दौरान युद्ध विराम की घोषणा होने के कई दिन बाद पाकिस्तानी सेना ने सीमावर्ती गांव नग्गी के पास भारत के एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यह क्षेत्र रेतीले धोरों से आच्छादित था। भारतीय सेना को इसकी जानकारी मिली तो जवाबी कार्रवाई हुई। भारतीय सेना के हमले से घबरा कर पाक सेना मैदान छोड़ कर भाग गई। रेतीले धोरों वाली भूमि को वापस लेने के लिए लड़ी गई यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में सैण्ड ड्यून की लड़ाई के नाम से दर्ज है। इस युद्ध में बाईस सैन्य अधिकारियों और जवानों ने वीर गति पाई। उन्हीं की स्मृति में नग्गी वार मेमोरियल बनाया गया है।