राज्य सरकार की ओर से इस योजना के नियमानुसार इंशोरेंस कंपनी से उस समय क्लमे राशि मिलती है जब रोगी चौबीस घंटे तक भर्ती रहता है। लेकिन इस खेल में चिकित्सालय प्रशासन को सवा चार करोड़ रुपए का भारी भरकम बजट की जगह फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं हो पाएगी। चिकित्सालय अधिकारियों की माने तो एक रोगी एक दिन एडमिट रहता है तो चिकित्सालय को 750 रुपए इंशोरेंस कंपनी से क्लेम राशि मिलती है। ऐसे में 2800 रोगियों के एक दिन के भर्ती होने से 21 लाख रुपए मिल जाते, इसके अलावा प्रति रोगी को प्रति ऑपरेशन 15 हजार रुपए का आकलन किया जाएं तो यह राशि 4 करोड़ 20 लाख रुपए बनती है। लेकिन यह राशि भी चिकित्सालय प्रशासन को नहीं मिल पाएगी।
सात नर्सिंग होम सबसे आगे
इलाके में इस योजना की गड़बड़ी करने के लिए सात प्राइवेट नर्सिंग होम के नाम सामने आए है। हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग निदेशालय के आदेश पर उप निदेशक डा.संदीप अग्रवाल की अगुवाई में जांच दल ने उन हॉस्पिटल की सूची तैयार कराई है जहां जहां ये पंजीकृत 2800 रोगी उपचार कराने गए थे। लेकिन सबसे ज्यादा नाम सात हॉस्पिटल के आ रहे है, जहां ऑपरेशन किए गए।
इन हॉस्पिटल में एक रोगी का बिल तीस से पचास हजार रुपए बनाकर इंशोरेंस कंपनी से क्लेम राशि के रुप में चुकाया है। इन सातों नर्सिग होम के लिए चिकित्सालय में कार्यरत पांच चिकित्सक लपकों की तरह भूमिका निभा रहे थे, यह प्रारभिंक जांच में सामने आया है। हालांकि चिकित्सालय की प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डा.सुनीता सरदाना ने भी अपने स्तर पर आंतरिक जांच रिपोर्ट तैयार कराई है, इस रिपोर्ट में भी पांच चिकित्सकों की भूमिका पर सवाल उठाए गए है।