23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नीम करौली: अलौकिक वादियों में एक चमत्कारिक धाम

- नीम करौली महाराज ने देश में 100 से भी अधिक मंदिरों और आश्रमों का निर्माण करवाया था, जिसमें से वृंदावन और कैंची धाम आश्रम मुख्य है।

5 min read
Google source verification

image

Deepesh Tiwari

Nov 28, 2022

kainchi_dham-deepesh_tiwari.jpg

देवभूमि उत्तराखंड की अलौकिक वादियों में कैंची धाम एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है। कैंची धाम जिसे नीम करौली धाम भी कहा जाता है, देवभूमि उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु यहां पहुंचकर अराधना व श्रद्धा के पुष्प श्री नीम करौली के चरणों में अर्पित करते हैं।

हर वर्ष यहां 15 जून को एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। भक्तजन यहां आकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते हैं कि यहां पर श्रद्धा और विनयपूर्वक की गयी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। यहां पर मांगी गयी मनौती पूर्णतया फलदायी कही गयी है।

अपने जीवन-काल में नीम करौली बाबा जी ने अनेकों स्थानों का भ्रमण किया। नीम करौली महाराज ने देश में 100 से भी अधिक मंदिरों और आश्रमों का निर्माण करवाया था, जिसमें से वृंदावन और कैंची धाम आश्रम मुख्य है।

कैंची धाम आश्रम में नीम करौली बाबा जी अपने जीवन के अंतिम दशक में सबसे ज्यादा रहे, शुरुआत में यह स्थान दो स्थानीय साधुओं, प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज के यज्ञ के लिए बनवाया गया था।

साथ ही यहां एक हनुमान मंदिर कि स्थापना भी उसी समय पर की गई। उत्तराखंड में कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा–नैनीताल रोड पर स्थित है। यह स्थान अत्यंत खूबसूरत एवं पहाड़ियों से घिरा हुवा है। भवाली-अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित कैंचीधाम की सन 1962 में क्षिप्रा नाम की छोटी पहाड़ी नदी के किनारे स्थापना हुई। यहां दो घुमावदार मोड़ हैं जो कि कैंची के आकार के हैं इसलिए इसे कैंचीधाम आश्रम भी कहते हैं।

परम पूज्य महान संत श्री नीम करौली महाराज जी के आश्रम में 15 जून 1999 को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे एक ऐसा निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटों से नहीं करवा पाए। थक-हार कर उन्होंने बाबा जी की शरण ली। आख़िरकार उनकी समस्याओं का निदान हुआ।

MUST READ :ये हैं न्याय के देवता, भक्त मन्नत के लिए भेजते हैं चिट्ठियां और चढ़ाते हैं घंटी व घंटे

यह घटना आज भी खास चर्चाओं में रहती है। इसके अलावा एक बार यहां आयोजित भंडारे में ‘घी’ की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने के लिए जब उपयोग में लाया गया तो, वह जल घी में परिवर्तित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे।

कहते हैं कि गृह-त्याग के बाद, महान संत जब अनेक स्थानों के भृमण पर थे, तभी एक बार महाराज जी एक स्टेशन से किसी वजह से ट्रेन में बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ गए। मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेक करने के लिए एक कर्मचारी उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है, कुछ वाद- विवाद के बाद ट्रेन के ड्राइवर ने एक जगह जिसका ट्रेन रोक दी।

यहां महाराज को उतार दिया गया और ट्रेन ड्राइवर वापस ट्रेन चलाने की कोशिश करने लगा, लेकिन ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुई। बहुत कोशिश की गयी, इंजिन को बदल कर देखा गया मगर सफलता हाथ नहीं लगी। इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा। तो कर्मचारियों ने पास में ही में एक पेड़ के नीचे बैठे हुए साधु को इंगित करते हुए, कारण अधिकारी को बता दिया। वो अधिकारी महाराज और उनकी दिव्यता से परिचित था।

अतः उसने साधु को वापस ट्रेन में बिठाकर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा। साधु महाराज ने इंकार कर दिया, परन्तु जब अन्य सहयात्रियों ने भी महाराज से बैठ जाने का आग्रह किया तो महाराज ने दो शर्ते रखी। एक कि उस स्थान पर ट्रेन स्टेशन बनाया जाएगा, दूसरा कि साधु सन्यासियों के साथ भविष्य में ऐसा वर्ताव नहीं किया जाएगा। रेलवे के अधिकारियों ने दोनों शर्तों के लिए हामी भर दी, तो महाराज ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चल पड़ी। बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया।

महाराज नीम करोली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर नमक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रशाद शर्मा था। नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। अकबरपुर के किरहीनं गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई। इसके बाद मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था, परन्तु जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे।

हमेशा एक कंबल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती हैं। बाबा के उपलब्ध सभी फोटो कम्बल में हैं और भक्त भी उन्हें कम्बल ही भेंट करते थे। पंडित गोविंद वल्लभ पंत, डॉ. सम्पूर्णानन्द, राष्ट्रपति वीवी गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरुप पाठक, राज्यपाल व केन्द्रीय मंत्री रहे केएम मुंशी, राजा भद्री, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानन्दन पंत, अंग्रेज जनरल मकन्ना, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और भी ऐसे अनेक लोग बाबा के दर्शन के लिए आते रहते थे।

MUST READ :वैशाख माह में ऐसे पाएं भगवान शिव की कृपा, जानें प्रसन्न करने के उपाय

बाबा राजा-रंक, अमीर-गरीब, सभी का समान रुप से पीड़ा-निवारण करते थे। उनके उपदेश लोगों को पतन से उबारते और सत्मार्ग-सत्पथ पर चलाते।

यहां तक की फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब की प्रेरणा का स्थल भी कैंची धाम ही है। यहां नीम करौली बाबा का कैंची धाम आश्रम इनके अलावा कई सफल लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत साबित हुआ। एप्पल की नींव रखने से पहले स्टीव जॉब कैंची धाम आए थे। यहीं उनकों कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली थी। जिस वक्त फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग फेसबुक को लेकर कुछ तय नहीं कर पा रहे थे तो स्टीव जॉब ने ही उन्हें कैंची धाम जाने की सलाह दी थी। उसके बाद जुकरबर्ग ने यहां की यात्रा की और एक स्पष्ट विजन लेकर वापस लौटे। फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब के अलावा भारी संख्या में विदेशी साधक नीम करौली महाराज से जुड़ रहे हैं।

10 सितंबर 1973 में वृंदावन की पावन भूमि पर नीम करौली बाबा का निधन हो गया, लेकिन कैंची धाम आश्रम में अब भी विदेशी आते रहते हैं। बताया जाता है कि सबसे ज्यादा अमेरिकी ही इस आश्रम में आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच है। यहां पांच देवी-देवताओं के मन्दिर हैं। इनमें हनुमान जी का भी एक मन्दिर है। भक्तों का मानना है कि बाबा खुद हनुमान जी के अवतार थे।

ऐसे पहुंचे कैंची धाम
देश के किसी भी हिस्से से यहां आने के लिए आपको हल्द्वानी या काठगोदाम रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा। इसके पश्चात सड़क मार्ग से भी कैंची धाम जा सकते है। वहीं आप सड़क मार्ग से भी हल्द्वानी या काठगोदाम होते हुए कैची धाम तक पहुंच सकते है। वहीं यदिअगर आप हवाई मार्ग से आते है तो पंतनगर एयरपोर्ट तक का सफर आप हवाई मार्ग से कर सकते है। पंत नगर एयरपोर्ट से कैंची धाम की दूरी लगभग 72 किलोमीटर है। इस सफर को प निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बस से भी तय कर सकते है। काठगोदाम के बाद लगभग 40 किलोमीटर पहाड़ी सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है, जो निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बसों से भी तय किया जा सकता है।