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यहां जमीन से निकल रहे हैं दुर्लभ और कीमती सिक्के, खुदाई करने उमड़ी भीड़

टीकमगढ़ जिले में एक पत्थर की खदान में काम चल रहा था। खुदाई के दौरान मजदूरों को रेत में दबे एक बर्तन में मुगल काल के कुल 164 सिक्के निकले हैं।

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यहां जमीन से निकल रहे हैं दुर्लभ और कीमती सिक्के, खुदाई करने उमड़ी भीड़

टीकमगढ़. मध्य प्रदेश का एक जिला है पन्ना जो विश्वभर में हीरे उगलने वाली धर्ती के तौर पर जाना जाता है। लेकिन, अब मध्य प्रदेश का एक जिला ऐसा है जिसकी धरती दुर्लभ सिक्के उगल रही है। मामला टीकमगढ़ का है, जहां अबतक 100 से अधिक दुर्लभ सिक्के जमीन से निकल चुके हैं। पुरातत्व विभाग ने इन सिक्कों को अपने कब्जे में ले लिया है और इनका परीक्षण करने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, जानकारों की मानें तो ये सिक्के मुगल काल के हैं। जानकारी तो ये भी मिली है कि, खदान पर मजदूरों के अलावा आसपास के लोग भी आकर खुदाई करने लगे हैं, ताकि जमीन से निकलने वाले सिक्के किस्मत से उन्हें मिल जाएं।


आपको बता दें कि, टीकमगढ़ जिले में एक पत्थर की खदान में काम चल रहा था। खुदाई के दौरान मजदूरों को रेत में दबे एक बर्तन में मुगल काल के कुल 164 सिक्के निकले। इस संबंध में जिला खनन अधिकारी प्रशांत तिवारी ने बताया कि, पत्थर खनन से जुड़े एक निजी ठेकेदार ने उन्हें सिक्कों की जानकारी दी। वो बुधवार को बुंदेलखंड क्षेत्र के जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर नंदनवारा गांव स्थित मौके पर पहुंचे।

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सिक्कों पर लिखी है उर्दू या फार्सी

खनन अधिकारी के अनुसार, कुल 164 सिक्कों में कुल चांदी के 12 और तांबे के बाकी बचे हुए सिक्के शामिल हैं। जिन पर उर्दू या फारसी में नक्काशी की गई है। सिक्के जिले के कोषागार में जमा करा दिए गए हैं। अधिकारी ने कहा कि, पुरातत्व विभाग की एक टीम सिक्कों का विश्लेषण कर रही है। सिक्कों के काल का पता लगाने के लिए उन पर लिखी भाषा का अध्ययन किया जा रहा है , तभी सिक्कों के बारे में स्पष्ट रूप से पता लग सकेगा।

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क्या कहता है इतिहास?

खास तौर पर निवाड़ी जिले में ओरछा, जो अपने राम राजा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, नंदनवारा गांव से लगभग 45 किमी दूर स्थित है। निवाड़ी जिले को 2018 में टीकमगढ़ से अलग कर बनाया गया था। इतिहास के अनुसार, 1626 में जुझार सिंह ओरछा का राजा बना और उसने मुगल साम्राज्य के जागीरदार नहीं रहने की कसम खाई। मुगल बादशाह शाहजहाँ से आज़ादी दिलाने के उनके प्रयास ने उनके पतन का मार्ग प्रशस्त किया। औरंगजेब के नेतृत्व में उसपर आक्रमण किया गया और 1635 में इसे जीत लिया, जिससे सिंह को चौरागढ़ से पीछे हटना पड़ा।

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