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दो सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़े दो भाई, दोनों ने दर्ज कराई शानदार जीत, पढ़ें एमपी विधान सभा चुनाव यादों के झरोखे से

जीत के बाद एक ने राजनीति छोड़ी, दूसरे को सीट बदलने से मिली हार, जतारा और टीकमगढ़ से लड़ा चुनाव

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देश के स्वतंत्रता होने के साथ ही जब मप्र का गठन नहीं हुआ था तो टीकमगढ़ विंध्य प्रदेश का हिस्सा था। विंध्य प्रदेश के गठन के बाद जब उत्तरदायी शासन स्थापित हुआ तो निवाड़ी जिले के कद्दावर नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लालाराम वाजपेयी को गृह मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी जिले से जहां उमा भारती के रूप में प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली तो इसी जिले ने विधानसभा जैसे चुनाव में उन्हें हरा भी दिया। जिले में राजनीतिक उठा पटक के ऐसे कई किस्से आज इतिहास में दर्ज है। इन्हीं किस्सों में शामिल है दो सगे भाईयों का एक साथ चुनाव लड़ना और जीतकर विधानसभा पहुंचना। इन दोनों ने अपना पहला चुनाव निर्दलीय रूप से लड़ा और फिर दूसरे चुनाव में कांग्रेस ने इन्हें टिकट दिया।

नरेंद्र सिंह के साथ हारे चचेरे भाई

1972 में नरेंद्र सिंह जतारा सीट छोड़ कर निवाड़ी पहुंचे। यहां पर उन्हें सोशलिस्ट पार्टी के लक्ष्मीनारायण नायक के हाथों हार का सामना करना पड़ा। वहीं नरेंद्र सिंह के निवाड़ी पहुंचने पर उनके चचेरे भाई प्रद्युम्न सिंह बीजेएस पार्टी का टिकट लेकर जतारा चुनाव लडऩे पहुंचे थे, लेकिन जनता ने इन्हें नकार दिया। जतारा से रामकृष्ण मिश्रा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए जीत दर्ज की गई। ऐसे में यह दोनों चुनाव हार गए। इसके बाद से राजपरिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं आया।

देश के स्वतंत्र होने के बाद जब लोकतंत्र की स्थापना हुई तो 10 वर्षों तक राजपरिवार इससे दूर रहा। वहीं 1962 में राजपरिवार के नरेंद्र सिंह जू देव एवं ज्ञानेंद्र सिंह जू देव ने राजनीति में आने का मन बनाया। यह दोनों एक साथ चुनाव मैदान में कूद गए। नरेंद्र सिंह ने जतारा तो ज्ञानेंद्र सिंह ने टीकमगढ़ विधानसभा से निर्दलीय रूप से फार्म भर दिया। पहली बार बिना किसी राजनीतिक सपोर्ट के मैदान में उतरे इन भाइयों का जिले की जनता ने ऐसा साथ दिया कि विरोधियों की जमानत ही जब्त हो गई। 1962 में नरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के लालाराम वाजपेयी को करारी शिकस्त दी। इस चुनाव में नरेंद्र सिंह को 30678 मत मिले तो लालराम वाजपेयी को महज 5294 मतों से संतोष करना पड़ा। यही हाल टीकमगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ रहे इनके भाई ज्ञानेंद्र सिंह का था। उन्होंने चुनाव में रिकार्ड 30464 मत प्राप्त किए तो कांग्रेस के पीतांबर अध्वर्यु 3181 वोट ही प्राप्त कर सके। इसके बाद 1967 के चुनाव में दोनों भाइयों को कांग्रेस ने टिकट दिया। इन दोनों ने फिर से अपने चुनाव जीते। 1967 के चुनाव के बाद टीकमगढ़ से ज्ञानेंद्र सिंह का राजनीति से मन ऊब गया और फिर उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

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