scriptMud Race पर पहली भारतीय फिल्म तैयार, अप्रेल-मई में प्रदर्शन के आसार | First Indian movie on mud race supposed to be Malayalam movie Muddy | Patrika News

Mud Race पर पहली भारतीय फिल्म तैयार, अप्रेल-मई में प्रदर्शन के आसार

locationमुंबईPublished: Mar 18, 2021 11:46:39 pm

मलयालम मूवी ‘मडी’ हिन्दी व अन्य भाषाओं में डब की जाएगी। इस मूवी में कच्चे रास्तों पर जीपों की दौड़ और किरदारों की रंजिशो और साजिशो के प्रसंग भी दौड़ के साथ जोड़े जाएंगे।

Malayalam movie Muddy

Malayalam movie Muddy

-दिनेश ठाकुर

जिंदगी और दौड़ एक सिक्के के दो पहलू हैं। अनादि काल से दुनिया घूम रही है। इंसान दौड़ रहा है। वक्त इतना तेजी से दौड़ रहा है कि अब इंसान को अपनी जगह पर खड़े रहने के लिए भी दौडऩा पड़ता है। आदमी के दौडऩे की रफ्तार उस समय सबसे ज्यादा होती है, जब किसी गली से गुजरते हुए वहां के श्वान उसके पीछे दौडऩा शुरू करते हैं। इस चुस्त-फुर्त दौड़ के बाद वह कसम खाता है,’तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद।’ आदमी कुछ गलियों से बच सकता है, दौड़ से बचना मुश्किल है। दुनिया में दौड़ की इतनी महिमा है कि इसको लेकर तरह-तरह के खेल खेले जाते हैं, किस्से रचे जाते हैं, फिल्में बनाई जाती हैं।

फिल्मों में किस्म-किस्म की दौड़
दुनिया में जबसे फिल्में बन रही हैं, उनमें दौड़ के प्रसंग चल रहे हैं। जिन्होंने हॉलीवुड की क्लासिक ‘बेन-हर’ देख रखी है, इसकी रथ-दौड़ को नहीं भूले होंगे। अपनी ‘शोले’ की दौड़ भी कइयों को याद होगी, जिसमें बसंती (हेमा मालिनी) का तांगा आगे और घोड़ों पर सवार डाकुओं की पलटन पीछे थी। इससे पहले बी.आर. चोपड़ा की ‘नया दौर’ में अलग तरह की दौड़ दिखाई गई। यह पारंपरिक स्वदेशी वाहनों (तांगे, बैलगाड़ी) और तकनीक (कारों) की दौड़ थी। उस जमाने में स्वदेशी वाहनों का दौड़ जीतना लोगों को हजम हो गया था। आज किसी फिल्म में वैसी दौड़ दिखाई जाए, तो बदहजमी हो जाए।

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भारत में फिलहाल मड-रेस का ज्यादा चलन नहीं
तेज रफ्तार जमाने को दौड़ के नए रोमांच से रू-ब-रू कराने के लिए मलयालम फिल्मकार डॉ. प्रगभल ने ‘मडी’ नाम की फिल्म बनाई है। इसे दक्षिण की दूसरी भाषाओं के अलावा हिन्दी में भी डब किया जाएगा। मड-रेस (मिट्टी-दौड़) पर इसे भारत की पहली फिल्म बताया जा रहा है। भारत में फिलहाल मड-रेस का वैसा चलन नहीं है, जैसा ब्राजील, चिली, अमरीका आदि देशों में हैं। वहां तरह-तरह की मड-रेस होती हैं। कीचड़ में कूदना, दौड़ना और लोट-पोट होना भी मड-रेस है। कीचड़ और कच्चे रास्तों पर गाड़ियां चलाना भी मड-रेस है। कीचड़ में दौड़ते हुए एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना भी मड-रेस है। दक्षिण वालों की ‘मडी में कच्चे रास्तों पर जीपों की दौड़ दिखाई जाएगी। किरदारों की अपसी रंजिशों, साजिशों और एक-दूसरे को पटखनी देने के प्रसंग इसी दौड़ के साथ दौड़ेगे। दौड़ की शर्त यह है कि जीपें सिर्फ मिट्टी के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर दौड़ेगी। पक्के रास्तों पर आने का मतलब हार मानना होगा। बहरहाल, ‘मडी’ अप्रेल या मई में सिनेमाघरों में पहुंच सकती है।

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प्रयोगवादी फिल्मों के लिए मशहूर
मलयालम सिनेमा प्रयोगवादी फिल्मों के लिए मशहूर है। बॉलीवुड वाली परिपाटी वहां नहीं है कि कोई फिल्म चली नहीं कि उसकी कई कार्बन कापी तैयार करने की होड़ शुरू हो गई। मलयालम फिल्मकार नई थीम, नए विषय और नई कहानियों की खोज में रहते हैं। वह ‘दृश्यम’ बनाते हैं। फिर बॉलीवुड भी ‘दृश्यम’ बनाता है। वहां हाल ही ‘दृश्यम’ का दूसरा भाग बना है। अब बॉलीवुड भी पके-पकाए माल के दूसरे भाग की तैयारी में है। दो साल पहले मलयालम फिल्मकार लिजो जोस पेलिसेरी की ‘जलीकट्टू’ ने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह मे वाहवाही लूटी थी। दक्षिण में बैलों और इंसानों की भिड़ंत का खेल जलीकट्टू काफी लोकप्रिय है। पेलिसेरी से पहले किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि इस खेल पर सलीकेदार फिल्म भी बन सकती है।

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