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Pakistan की बैन फिल्म ‘जिंदगी तमाशा’ ऑस्कर की दौड़ में

सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए भारत की 'जलीकट्टू' और पाकिस्तान की 'जिंदगी तमाशा' 'जिंदगी तमाशा' ऐसी फिल्म है, जिस पर पाकिस्तान में लगा है बैन इस्लामी संगठनों का आरोप फिल्म मजहबी नेता की गलत तस्वीर पेश करती है

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Pakistan की बैन फिल्म 'जिंदगी तमाशा' ऑस्कर की दौड़ में

Pakistan की बैन फिल्म 'जिंदगी तमाशा' ऑस्कर की दौड़ में

-दिनेश ठाकुर

इस बार ऑस्कर अवॉर्ड ( Oscar Awards ) की सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की ट्रॉफी के लिए भारत की 'जलीकट्टू' (मलयालम) के अलावा विभिन्न देशों की जिन 87 फिल्मों ने दावेदारी पेश की है, उनमें पाकिस्तान की 'जिंदगी तमाशा' ( Zindig Tamasha Movie ) शामिल है। भारत की तरह पाकिस्तान की भी किसी फीचर फिल्म ने ऑस्कर नहीं जीता है। भारत की तीन फिल्मों (मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे, लगान) को नामांकन हासिल हुआ, पाकिस्तान की कोई फिल्म यहां तक नहीं पहुंच पाई। गैर-फीचर फिल्म (डॉक्यूमेंट्री) वर्ग में जरूर पाकिस्तान दो बार, 2012 में 'सेविंग फेस' और 2016 में 'ए गर्ल इन द रिवर' के लिए ऑस्कर जीत चुका है। यह दोनों फिल्में शमीन उबैद चिनॉय की हैं। गैर-फीचर फिल्म वर्ग में भारत का खाता खुलना बाकी है।

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कट्टरपंथियों के निशाने पर
बहरहाल, दिलचस्प बात यह है कि इस बार ऑस्कर के लिए दावेदारी जताने वाली पाकिस्तान की 'जिंदगी तमाशा' ऐसी फिल्म है, जिस पर उसके देश में रोक लगी हुई है। 'हमसफर' और 'शहर-ए-जात' जैसे टीवी ड्रामा के लिए पहचाने जाने वाले अभिनेता- फिल्मकार सरमद खूसट की इस फिल्म में एक बुजुर्ग मजहबी नेता का किस्सा है, जो अपना नाचता हुआ वीडियो वायरल होने के बाद कट्टरपंथियों के निशाने पर आ जाता है। बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रीमियर के बाद इस साल जनवरी में 'जिंदगी तमाशा' पाकिस्तान के सिनेमाघरों में पहुंचने वाली थी, लेकिन विवाद के कारण इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई। इस्लामी संगठनों की शिकायत है कि फिल्म मजहबी नेता की गलत तस्वीर पेश करती है।

भारतीय फिल्मों पर पाकिस्तान में सख्ती
दरअसल, अस्सी के दशक में जिया उल हक की हुकूमत के दौरान पाकिस्तान में फिल्मों की सेंसरशिप सख्त होती गई। अपनी फिल्मों पर ही नहीं, दूसरे देशों की फिल्मों पर भी रोक लगाने के लिए वहां के हुक्मरान कई कायदे गिना देते हैं। भारतीय फिल्मों पर गाज ज्यादा गिरती है। कभी हुकूमत रोक लगाती है, तो कभी सेंसर बोर्ड प्रदर्शन की इजाजत नहीं देता। 'भाग मिल्खा भाग' को इसलिए पाकिस्तान के सिनेमाघरों में नहीं पहुंचने दिया गया कि यह एक भारतीय सिख की उपलब्धियों का बखान करती है, तो 'रांझना' पर रोक की वजह यह बताई गई कि इसमें मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के की प्रेम कहानी है।

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इन फिल्मों पर लगी रोक
भारतीय फिल्मों में पाकिस्तान के बारे में जरा-सी ऊंच-नीच होने पर उन पर रोक लगा दी जाती है। 'तेरे बिन लादेन', 'एक था टाइगर', 'हैदर', 'फैंटम', 'बेबी', 'नाम शबाना', 'नीरजा' और 'राजी' को पाकिस्तान विरोधी फिल्में बताकर प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी गई। आमिर खान की 'दंगल' में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं था, लेकिन उनसे कहा गया कि इसमें से भारत के राष्ट्र गान और तिरंगे के सीन हटा दिए जाएं। आमिर खान के इनकार से वहां इस फिल्म के रास्ते बंद हो गए। 'उड़ता पंजाब' पर रोक की वजह यह बताई गई कि इसमें कई जगह अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है।

पाक सिनेमाघरों की ऑक्सीजन है बॉलीवुड
पाकिस्तान के सिनेमाघरों को सबसे ज्यादा ऑक्सीजन भारतीय फिल्मों से मिलती है। जब भी इन फिल्मों पर रोक लगती है, वहां के सिनेमाघर भीड़ को तरस जाते हैं। करीब दो साल से यही आलम है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर रोक लगी हुई है।