
पानी के साथ-साथ दूध की भी आपूर्ति करता है बीसलपुर बांध
टोडारायसिंह. बीसलपुर बांध में पूर्ण भराव होने के साथ ही बांध किनारे टोडारायसिंह क्षेत्र के थड़ोला, पंचमुखी कॉलोनी, शम्भूनगर, लाडपुरा, प्रधाननगर, सुरजपुरा, थडोली, सुरजपुरा, भासू, रामसिंहपुरा, भगवानपुरा, टोपा कॉलोनी, दाबड़दुम्बा की आंशिक डूब में आए खेतों में पानी भर जाने से किसानों की मक्का, बाजरा, तिल व ज्वार की फसलें डूब गई है।
जबकि लम्बे अर्से से बांध खाली होने के बीच कैचमेंट एरिया स्थित भटेडा, चौपड़ा, चौपड़ा, दामा की झौपडियां, सुजानपुरा समेत निकटवर्ती डूब क्षेत्र के गांव व खेत खाली हो गए थे। जहां पर सर्दी में लोगों ने अपने मवेशियों के साथ फसलें बुवाई कर दी थी। गत पखवाड़े में पानी की आवक शुरू होने के बाद धीरे-धीरे लोग मवेशियों के साथ विस्थापित कॉलोनियों में पहुंच गए।
पानी का फैलाव बढऩे के बाद बांध पेटे में टापू व किनारे स्थित खेतों में पानी भरने लगा, लेकिन टापू पर आंशिक भूमि पर पानीं नहीं भरने से लोग मवेशियो को रोके हुए है। स्थिति यह है कि सुजानपुरा, दामा की झुपडिय़ां, परसा की झुपडिय़ां व मीणों की झुपडिय़ों में अभी भी मवेशियों को छोड़ रखा है।
बांध किनारे से करीब तीन-चार किमी. पानी में रोजाना लोग सुबह नाव से विस्थापित कॉलोनी में रह रहे परिवारजनों के लिए दूध लेकर आते है। जान जोखिम में डालकर ये लोग खाद्य सामग्री लेकर पुन: बांध पेटे स्थित टापू पर लौट जाते है। उक्त चारों टापूओं पर करीब दो-तीन दर्जन भैंसे है, जबकि प्रशासन ने हाई अलर्ट जारी करते हुए ग्रामीणों को चेता रखा है।
उल्लेखनीय है कि बीसलपुर बांध के पूर्ण भराव बाद कैचमेंट एरिया व बांध किनारे दर्जनों गांवों की हजारों बीघा खेतों में खड़ी फसलें पानी में डूब गई। गत सप्ताह से बांध में परियोजना अधिकारी पूर्ण भराव 315.50 आर.एल. मीटर का लेवल बनाए रखने को लेकर निरंतर डाउनस्ट्रीम में तथा टोडा क्षेत्र के अभावग्रस्त गांवों के जलाशयों को भरने के लिए आवश्यकता अनुसार पानी छोड़ रहे है। वहीं जयपुर, अजमेर समेत अन्य कस्बे व ग्रामीण क्षेत्र में बांध से प्रतिदिन 3 सेमी जलापूर्ति की जा रही है।
मजबूर है ग्रामीण, मेवेशी पहुंच जाते है टापू पर
शम्भू नगर व पंचमुखी कॉलोनी के लोगो का कहना है कि लोगों से अधिक मवेशी उक्त क्षेत्र में जाने के आदी है। सुबह जंगल में चरने के लिए छोड़ते है, तो वे पानी में तैरते हुए टापूओं पर पहुंच जाते है। इधर, मजबूरन देर शाम छोटी नावों के माध्यम से टापूओं पर पहुंच कर उन्हें लाना पड़ता है। वहीं, कई परिवार को डूब में आई काश्त भूमि पर मवेशियों का ठहराव कर रखा है।
Published on:
30 Aug 2019 08:14 am
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