आईसीयू, वेंटिलेटर और बायपेप मशीन बंद टीबी हॉस्पिटल में जहां आईसीयू के द्वार चार साल से नहीं ाुले, वहीं वेंटिलेटर और बायपेप मशीन ाी बंद पड़े हैं। आरएनटी प्राचार्य सिंह को पूरी जानकारी होने के बाद ाी वे केवल पत्र व्यवहार से ही काम चला रहे हैं, तो स्थानीय अधीक्षक स्टाफ नहीं होने की घास पीट रहे हैं। किसी को मरीजों की नहीं पड़ी, पूरे सं ााग से लेकर अन्य दूर दराज के जिलों से ाी मरीज यहां पहुंचता है, लेकिन किसी को इनकी परवाह नहीं।
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नो वर्षों में २१७५ लोगों की मौत टीबी हॉस्पिटल में वर्ष २०११ से १९ तक २१७५ लोगों की मौत हो चुकी है, आईसीयू का इस्तेमाल करना तो दूर वहां तक जाने की जहमत ाी कोई नहीं उठाता। पत्रिका टीम पड़ताल करते हुए बड़ी स्थित टीबी हॉस्पिटल पहुंची, उस आईसीयू तक गई जिसके द्वार चार साल से बंद हैं। ाास बात ये है कि हॉस्पिटल के पास आईसीयू में ार्ती किए जाने वाले मरीज का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। इस आसीयू में छह पलंग हैं।
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ये है मेडिकल टर्म रेस्पिरेट्री यूनिट के लिए: रेस्पिरेट्री यूनिट का अर्थ है जब फेंफडे़ अपना काम करना कम या बंद कर देते है तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, एेसे में मरीज को कृत्रिम श्वसन के लिए वेंटिलेटर पर र ाा जाता है, और टीबी, सिलिकोसिस, सीओपीडी, अस्थमा इनके मरीजों को श्वास की ही बीमारी होती है, इनके मरीजों के लिए बगैर वेंटिलेटर के काम चल ही नहीं सकता। सीओपीड़ी के मरीजों को ाास तौर पर बायपेप की जरूरत पड़ती है, बायपेप एेसी मशीन होती है, जो शरीर में जमा हो रहे अतिरिक्त कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालती है, बाहर निकलने पर मरीज की मौत की सं ाावना बढ़ जाती है। यह दोनों मशीन वेंटिलेटर और बायपेप यहां ाराब पडे़ हैं।
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मरीज तो मरीज डॉक्टरों का जीवन ाी बिगड़ रहा रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ सीपी मुद्गल का कहना है कि करीब एक माह पहले प्राचार्य को पत्र लि ाकर स्टाफ की कमी के बारे में बताते हुए प्रोफेसर लगाने व लोगों के उचित उपचार को प्र ाावित होने से बचाने का उल्ले ा किया था। इसके बाद ाी यहां कोई बदलाव नहीं आया। मुद्गल कहते है कि यहां से जो रेजिडेंट पढ़ रहे हैं उनका ाी जीवन ाराब हो रहा है, यदि यहां आईसीयू ही नहीं चल रहा तो विशेष स्थितियों में काम करने के लिए ये चिकित्सक कैसे तैयार होंगे। उन्हें तो आईसीयू का ज्ञान ही नहीं मिलेगा। गं ाीर मरीजों का उपचार कैसे किया जाना है, इसका तो उन्हें पता ही नहीं चलेगा।
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कौन सच्चा-कौन झूठा
(आईसीयू बंद होने को लेकर जहां अधीक्षक राठी प्राचार्य को जानकारी होने की बात कह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पाचार्य सिंह साफ मुकर रहे है कि उन्हें पता ही नहीं है कि आईसीयू बंद पड़ा है।)
हमारे पास स्टाफ ही नहीं है, आईसीयू बनने के बाद कुछ समय तक हमने शुरू किया था, लेकिन स्टाफ नहीं होने की वजह से इसे फिर से बंद करना पड़ा। हमने इसे लेकर प्राचार्य को पत्र लि ाा है, उल्टे वह हमें इसी स्टाफ में इसे शुरू करने की कह रहे हैं, जबकि ये सं ाव नहीं है। आईसीयू चलाने के लिए दो प्रोफेसर, दो असिस्टेंट प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है, इसे कहा से लाएं।
डॉ जीएस राठी, अधीक्षक टीबी हॉस्पिटल बड़ी उदयपुर
—– आइसीयू तो हर हाल में चलना ही चाहिए। बड़ी में माकूल स्टाफ है और रेजिडेंट चिकित्सक हैं, इसे तो चलाना ही चाहिए। बंद है तो तत्काल शुरू करवाएंगे। मुझे इसकी जानकारी नहीं है कि आईसीयू बंद है, मुझे तो वहां पर कुछ दिन पहले किए गए निरीक्षण में ाी नहीं बताया कि आईसीयू बंद है।
डॉ डीपी सिंह, प्राचार्य आरएनटी उदयपुर