जोधपुर निवासी दिनेश पुत्र मोहनलाल गुर्जर हत्या के मामले में उदयपुर के केन्द्रीय कारागृह में सजा काट रहा था। दिनेश ने बयानों में बताया कि वर्ष 2006 में जेल में उसकी मित्रता तुलसी उर्फ प्रफुल्ल से हुई थी। वह हमीद लाला हत्याकांड में आजम, बंटी, सिल्वेस्टर, फिरोज व अन्य के साथ में जेल आया था। जेल में रहने के दौरान तुलसी ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट को कई पत्र लिखे। मुझे अंग्रेजी का ज्ञान होने से उसने मुझसे भी मदद मांगी थी।
मार्च 2006 में उदयपुर जेल में बोलचाल होने पर शेरू व अन्य कैदियों ने तुलसी के साथ मारपीट की थी। इस पर मैंने तुलसी के कहने पर उच्चतम एवं उच्च न्यायालय और कलक्टर को आवेदन भेजा था। उस वक्त मैंने तुलसी को मानवाधिकार आयोग में भी पत्र भेजने की सलाह दी थी। तुलसी के कहने पर मैंने अंग्रेजी में नासिर नामक एक अन्य उम्रकैदी से लेटर लिखवाया था।
तत्कालीन गृहमंत्री व अन्य ने रचा षड्य़ंत्र
तुलसी ने बताया था कि उसने व सोहराबुद्दीन ने एक मार्बल उद्यमी से 25 करोड़ रुपए की फिरौती मांगते हुए उन्हें धमकाया था। वे कुछ राशि देने को तैयार भी हो गए थे। इस बीच मार्बल उद्यमी ने राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री व गुजरात के कुछ राजनीतिज्ञों से मिलकर सोहराबुद्दीन के एनकांउटर का षड्य़ंत्र रचा था। तुलसी ने बताया कि इसी योजना के तहत उसे, सोहराबुद्दीन व उसकी पत्नी कौसर बी को हैदराबाद जाते समय उठा लिया था। पुलिस उसे व सोहराब को ही ले जाना चाह रही थी, लेकिन कौसर बी जबर्दस्ती साथ हो गई। तुलसी ने बताया कि बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया, परन्तु सोहराब व कौसर बी को अपने साथ ले जाकर मार डाला।
तुलसी नहीं चाहता था गुजरात जाना
दिनेश ने बयानों में बताया कि तुलसी के कहे अनुसार उसे राजनीतिज्ञों व पुलिस अधिकारियों से खतरा था। इसलिए पत्र में वह उनके नाम लिखवाना भी नहीं चाह रहा था। तुलसी को अपने मारे जाने की आशंका थी और वह गुजरात पुलिस के रवैये को जानने के कारण वह वहां जाना नहीं चाहता था। तुलसी ने बताया कि पेशी पर ले जाने के दौरान उसने भांजे कुंदन और विमल को बुला लिया था। पुलिस ने उन्हें जबरन हिरासत में ले लिया था। उसके बाद तुलसी ने सीआई व एसपी के साथ भांजे व अन्य को छुड़वाने के लिए अभद्रता की थी। दिनेश का कहना था कि तुलसी गुजरात व एमपी में पेशी पर आता-जाता रहता था। उसे आशंका थी कि पुलिस उसे फर्जी मुठभेड में मार देगी। इसको लेकर उसने मानवाधिकार आयोग को कुछ अर्जी भी भेजी थी। अन्तिम बार दिसम्बर २००६ में पेशी पर जाते समय तुलसी मुझसे मिला और बताया था कि अब मैं शायद ही आ पाऊं और अगले ही दिन उसकी फरारी की खबर और मुठभेड में मारे जाने की खबर सामने आई।
एसआई के भी हुए बयान
सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में सब इंस्पेक्टर दयालाल के भी बयान हुए। वर्ष २०१२ में सब इंस्पेक्टर रोजनामचे को लेकर गुजरात गया था। इसके बारे में पूछताछ की।