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१२ ज्योतिर्लिंग में केवल महाकाल में शिवरात्रि का नौ दिन उत्सव

महाशिवरात्रि पर होता है चार पहर का पूजन, उमड़ते हैं देशभर के श्रद्धालु

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शैलेष व्यास
उज्जैन. देश के १२ ज्योतिर्लिंग में केवल महाकालेश्वर ही ऐसा स्थान है, जहां शिवरात्रि का उत्सव नौ दिन तक होता है। पूरे नौ दिन भूतभावन बाबा महाकाल और माता पार्वती के विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। भस्म रमाने वाले बाबा महाकाल दूल्हा बनते हैं। इसके साथ ही महाशिवरात्रि राजाधिराज महाकाल का विशेष शृंगार होता है, बल्कि चार पहर का पूजन भी किया जाता है। मान्यतानुसार भगवान शिव को पूजन में हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है, लेकिन जिस प्रकार विवाह के दौरान दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है। उसी तरह भगवान महाकाल को भी हल्दी लगाई जाती है। शिवनवरात्रि के 9 दिन में बाबा महाकाल को हल्दी, केसर, चन्दन का उबटन, सुगंधित इत्र, ओषधी,फलों के रस आदि से स्नान करवाया जाता है। उनका नित नया मनमोहक शृंगार किया जाता है। यह परंपरा सिर्फ महाकालेश्वर मंदिर में है।
शिव-पार्वती विवाह रिसेप्शन की अनूठी परंपरा भी
शिव-पार्वती विवाह के बाद उज्जैन में रिसेप्शन की अनूठी परंपरा है। यह आयोजन शयन आरती भक्त परिवार किया जाता है। रिसेप्शन में ५६ भोग की प्रसादी के लिए हजारों भक्त उमड़ते हैं। रिसेप्शन की पत्रिका महाकाल व चिंतामन गणेश मंदिर पर चढ़ाने के बाद घर-घर जाकर भक्तों निमंत्रण दिया जाता है। रिसेप्शन से पहले भूत- प्रेत मंडली के साथ शहर में अनूठी बारात भी नगरकोट से निकलती है। इसमें आम और खास भक्त शामिल होते हैं। रुद्रसागर के पास मैदान में देर शाम से आधी रात तक रिसेप्शन में भोजन प्रसादी चलती है। रिसेप्शन के लिए क्विंटलों से भोजन प्रसादी बनाई जाती है। इसमें पूरी-सब्जी, दाल-चावल, भजिए-पापड़, हलवा सहित 56 प्रकार के पकवान रहते हैं।
कल बाबा धारण करेंगे फूलों का मुकुट
शिव नवरात्रि ? महोत्सव के पहले दिन से बाबा महाकाल को दूल्हा बनाया जाता है। बाबा नौ दिन तक दूल्हे के रूप में दर्शनार्थियों को दर्शन देते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। भगवान को शृंगारित कर, वस्त्र एवं आभूषण धारण कराने के बाद पूजन-अर्चन किया जाता है। इसमें शेषनाग शृंगार, घटाटोप शृंगार, छबीना शृंगार, होलकर शृंगार, मनमहेश शृंगार, उमा-मनमहेश शृंगार, शिवतांडव शृंगार, महाशिवरात्रि शृंगार, सप्तधान शृंगार के शामिल है। नौवें दिन शिवरात्रि की महापूजा होती है। महाशिवरात्रि के अगले दिन भगवान महाकाल का विपुल फूलों से शृंगार कर सवा क्विटंल फूल और फल से निर्मित मुकुट (सेहरा) धारण कराया जाता है।
पुजारी नौ दिन रखते हैं उपवास
आशीष पुजारी बताते हैं कि शिवरात्रि का अनूठा आयोजन महाकाल मंदिर में ही होता है और परंपरा अनादिकाल से चली आ रहीं है। शिवरात्रि के दौरान मंदिर के प्रमुख पुजारी, अन्य पुजारी ९ दिन का उपवास रखकर भगवान की आराधना कर सिर्फ फल ही ग्रहण करते हैं। महाशिवरात्रि की सुबह से लगातार ४२ घंटे से अधिक मंदिर के पट खुले रहते हैं। इसमें चार पहर का पूजन तो होता है। महाशिवरात्रि की रात को विशेष पूजन किया जाता है और यह पूरी रात चलता है। इसके बाद राजाधिराज को फूल और फल का मुकुट (सेहरा) धाराण कराया जाता है। महाशिवरात्रि और इसके दूसरे दिन दोपहर में होने वाली भस्म आरती के बाद भस्मआरती कराने वाले पुजारी और मंदिर के पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान को हरिओम का जल अर्पित करने के बाद नंदीगृह में बैठकर मंगल गीत गाती हैं। ऐसी परंपरा वर्षों से चली आ रही हैं। बाबा महाकाल और माता पार्वती का विवाह उत्सव तो रहता है, बाबा दूल्हा बनते हैं और फाल्गुन महीने का आगाज होता है। यही वजह है कि सवा क्विटंल फूल और फल का मुकुट (सेहरा) बाबा को अर्पित किया जाता है। पूजन के बाद तमाम भक्त मुकुट के कुछ अंश को बरकत के तौर पर प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। महाशिवरात्रि पर राजाधिराज मुकुट धारण किए रहते हैं, इसलिए तड़के होने वाली भस्म आरती दूसरे दिन दोपहर में १२ बजे होती है।