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उन्नावः सुप्रीम कोर्ट ने लगाया मेडिकल कॉलेज पर पांच करोड़ रुपए का जु्र्माना

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को उन्नाव के सरस्वती मेडिकल कॉलेज (Saraswati Medical College) पर छात्रों को दाखिला देने में मेडिकल काउंसल ऑफ इंडिया (Medical Council Of India) (एमसीआई) के नियमों का उल्लंघन करने पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क.
उन्नाव. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को उन्नाव के सरस्वती मेडिकल कॉलेज (Saraswati Medical College) पर छात्रों को दाखिला देने में मेडिकल काउंसल ऑफ इंडिया (Medical Council Of India) (एमसीआई) के नियमों का उल्लंघन करने पर पांच करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने पाया कि सरस्वती मेडिकल कॉलेज ने मेडिकल शिक्षा महानिदेशक (डीजईएमई) उत्तर प्रदेश से सहमति लिए बगैर खुद ही से 132 छात्रों को दाखिला दे दिया। कार्ट ने छात्रों की परीक्षा कराने व नियमानुसार दाखिला देने का भी आदेश दिया है।

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दरअसल शीर्ष न्यायालय ने सरस्वती एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट की एक याचिका पर सुनवाई की। याचिका के जरिए एमसीआई के 29 सितंबर 2017 के नोटिस को चुनौती दी गई थी। नोटिस में सरस्वती मेडिकल कॉलेज को 2017-18 अकादमिक वर्ष के लिए दाखिला लिए गये 150 छात्रों में 132 को निकालने का निर्देश दिया गया था। वहीं, 71 छात्रों ने भी एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने देने की अनुमति देने संबंधी निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था।

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यह माफ नहीं किया जा सकताः कोर्ट
न्यायालय ने कहा, ‘‘कॉलेज द्वारा अकादमिक सत्र 2017-18 के लिए एमबीबीएस पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में 132 छात्रों को दाखिला देना नियमों का इरादतन उल्लंघन है, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता कॉलेज को इस न्यायालय की रजिस्ट्री में आज से आठ हफ्तों के अंदर पांच करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया जाता है।’’ शीर्ष न्यायालय ने मेडिकल कॉलेज को यह भी निर्देश दिया है कि यह राशि किसी भी रूप में छात्रों से नहीं वसूली जाए। न्यायालय ने कहा कि कॉलेज ने 132 छात्रों को अपने मन से दाखिला दिया। इसके बाद उन्हें अध्ययन जारी रखने की अनुमति दी, जबकि एमसीआई ने उन्हें निकालने का निर्देश दिया था।

एमबीबीएस पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद छात्र दो साल सामुदायिक सेवा देंः कोर्ट
पीठ ने कहा कि छात्रों के दाखिले को रद्द करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, लेकिन उन्हें उनका एमबीबीएस पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद दो साल सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया क्योंकि वे लोग बेकसूर नहीं हैं और उन्हें पता था कि उनके नाम की सिफारिश डीजीएमई ने नहीं की थी।