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बुनकरों को मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर से बचाएगी आईआईटी बीएचयू की खास कुर्सी

locationवाराणसीPublished: Aug 08, 2021 02:07:10 pm

बनारस के हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे आईआईटी बीएचयू के शोध छात्र ने पिट लूम पर काम करने वाले बुनकरों के लिये बनाया है एर्गोनॉमिक डिजाइन वाली सीट।

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क, वाराणसी. करघे या लूम पर एक लगातार घंटों बैठकर काम करने वाले बुनकरों को अब न तो कमर दर्द सताएगा, और न ही जांघों में दर्द होगा। आईआईटी बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक शोध टीम ने पिटलूम का उपयोग करने वाले बुनकरों के लिये विशेष एर्गाेनॉमिक चेयर बनाई है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बुनकरों चाहे जितनी देर बैठकर काम करे उसे दर्द या परेशानी महसूस नहीं होगी।

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रिसर्च टीम के अनुसार, यह सीट बुनकरों को पीठ को सहारा देने और जांघों को आराम देने में मदद करेगी। इसलिए, बुनकरों को काम से संबंधित मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर (एमएसडी) होने का खतरा कम होगा। मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि हथकरघा उद्योग में बुनकर रोजाना एक ही जगह बैठकर कम से कम 12 घंटे लगातार काम करते हैं। इसके चलते उन्हें मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर का सामना करना पड़ रहा है। वाराणसी में किए गए सर्वे के मुताबिक ज्यादातर बुनकरों को कमर दर्द और जांघ में दर्द होता है।

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उन्होंने बताया कि एमएसडी होने का मुख्य वजह बुनकरों का बैठते समय उचित बैक सपोर्ट न होना है। उनकी इस परेशानी को देखते हुए उनके लिए एक सीट तैयार की गई है जो बुनकरों केा आराम देगी और उत्पादन अधिक उत्पादक में मदद करेगी।

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एर्गोनॉमिक चेयर की डिजाइन बनाने वाले मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के रिसर्च स्कॉलर एम कृष्ण प्रसन्ना नाइक बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि बुनकरों के लिए एक गड्ढे वाले करघे (पिटलूूम) पर पूरे दिन काम करना बहुत कठिन होता है। उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया समतल तख्ता किसी सहारे का नहीं होता है। रिसर्च ने खुलासा किया कि न केवल बूढ़े बल्कि युवा बुनकर भी एमएसडी का सामना कर रहे हैं।

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शरीर में दर्द के कारण बुनकर सुबह की अपेक्षा दोपहर की पाली में अधिक काम का अवकाश ले रहे हैं। इसलिए, बुनकरों के आकार के आधार पर समायोज्य सुविधाओं के साथ लागत प्रभावी और एर्गाेनॉमिक रूप से डिज़ाइन की गई सीट उन्हें एमएसडी से निजात दिलाने में मदद करती है। इस सीट का निर्माण भी आसान है। कोई भी बुनकर इसे अपने करघे के लिए बना सकता है।

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उन्होंने आगे बताया कि पहले उन्होंने बुनकरों की लंबाई, चौड़ाई, वजन, बैठने पर कमर की साइज, पीठ के आकार का नाप लिया। उसके बाद लकड़ी से कुर्सी की डिजाइन तैयार की गई है। इस कुर्सी में ऐसी व्यवस्था की गई है कि बुनकर उसे अपनी साइज के आधार पर सेटिंग कर सकता है।

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इस एर्गोनॉमिक कुर्सी को उपयोग में लाने वाले रामनगर स्थित सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने बताया कि बुनकर 5-6 घंटे काम करने के बाद शरीर के दर्द के कारण काम से छुट्टी लेते थे। इससे उनकी बुनाई की गति कम हो जाती है, जिससे उत्पादन में देरी होती है। अब हम अपने समाज में एर्गाेनॉमिक रूप से डिजाइन की गई इस सीट का उपयोग कर रहे हैं। इस सीट का इस्तेमाल करने वाले बुनकरों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि वे लंबे समय तक आराम से काम करने में सक्षम हैं। इसलिए, हम इस सीट को अपने सभी मौजूदा करघों के लिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं।

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