
प्रियंका गांधी
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी आज भले ही पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं लेकिन उनका पहला राजनीतिक दायित्व पूर्वांचल है। ऐसे में पूर्वांचल की हर घटना पर उनकी निगाह होती है। उनकी सोच यह भी है कि इस पूर्वांचल के रास्ते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर से पार्टी को सूबे की सत्ता के केंद्र तक पहुंचाया जा सकता है। वैसे भी पूर्वांचल कभी कांग्रेस का गढ रहा है। लेकिन तब न सपा थी, न बसपा। भाजपा भी सियासत के हाशिये पर ही रही। लेकिन सपा-बसपा के उदय के बाद जातीय समीकरण बदले और कांग्रेस लगातार पिछड़ती चली गई। अब इस पूर्वांचल से प्रियंका गांधी को उम्भा के रूप में एक बड़ा मौका हाथ लगा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके जरिए समूचे पूर्वांचल की 27 सीटों पर असर डाला जा सकता है। 13 अगस्त का प्रियंका गांधी का उम्भा दौरा भी सहनुभूति की आड़ में पूरी तरह से सियासी है। वह एक मैसेज देना चाहती हैं कि आदिवासी, दलित, अदर ओबीसी यानी गरीबों, मजलूमों, वंचितों की असली हिमायत कांग्रेस ही कर सकती है।
पूर्वांचल के एक मात्र विधायक को सौंपा नेतृत्व
बता दें कि पिछले तीन दशक से कांग्रेस यूपी की सियासत के हाशिये पर है। इस दौरान कांग्रेस ने लगातार प्रयोग करती रही पर हासिल कुछ खास नहीं हुआ। जनाधार लगातार घटता गया। विधानसभा में सीटें सिकुड़ती गई। आलम यह है कि वर्तमान में पूर्वांचल की महज एक सीट (रामकोला, कुशीनगर) है, जहां के विधायक हैं अजय कुमार लल्लू। ऐसे में वह लल्लू को ही आगे करके पूरे पूर्वांचल में सियासी दांव चल रही हैं। उन्हें ही संगठनात्मक बदलाव के लिए प्रभारी बनाया है। बात लोकसभा की करें तो 2014 और 2019 में एक भी सीट कांग्रेस के हिस्से नही आई।
पूर्वांचल का सियासी समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग
दरअसल, यूपी की सत्ता का रास्ता पूर्वी उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। राजनीतिक दलों के अनुसार सिर्फ पूर्वांचल में 127 सीटें आती हैं। इनमें से 52 सीटों का फैसला जाति और धर्म के आधार पर ही होता है। यही वजह है कि पूर्वांचल में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अधिक प्रभावी होता है।
जातिगत आंकड़ो की बात करें तो सबसे अधिक आबादी दलितों की है। इसके बाद हैं पिछड़ी जातियां फिर ब्राह्मण और राजपूत। अगर धर्म के आधार पर बात की जाए तो मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका चुनाव में सबसे अहम होती है।
जातीय आंकड़ा
मुस्लिम-15 से 16 फीसदी राजपूत -6 से 7 ब्राह्मण-9 से 10 यादव-13 से 14 प्रतिशत दलित-20 से 21 प्रतिशत निषाध-3 से 4 राजभर 3 से 4 सोनकर 1.5 प्रतिशत नोनिया-2 से 3 कुर्मी-4 से 5 प्रतिशत कुम्हार-2 से 3 प्रतिशत मौर्या (कोयिरी)-4 प्रतिशत अन्य-12 से 13 प्रतिशत। (यह आंकड़ा राजनीतिक दलों से प्राप्त है।)
पूर्वांचल के आदिवासी
2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 11 लाख, 34 हजार, 273 आदिवासी हैं। इसमें भोतिया, बुक्सा, जन्नसारी, राजी, थारू, गोंड, धुरिया, नायक, ओझा, पाथरी,राज गोंड, खरवार, खैरवार, सहारिया, परहइया, बैगा, पंखा, अगारिया, पतारी,चेरो, भुइया और भुइन्या जैसे आदिवासी हैं।
आदिवासी बहुल जिले
सोनभद्र, मिर्जापुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़,जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी और ललितपुर ऐसे जिले हैं जहां पर आदिवासी रहते हैं। इसके अलावा नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र लखीमपुर-खीरी, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर और महराजगंज जिले में थारू जनजाति के लोग भी रहते हैं।
अब इन्हीं को जोड़ कर 2022 की सियासत करना चाहती हैं प्रियंका गांधी
अब इन्हीं जातियों को जोड़ कर कांग्रेस महासचिव व पूर्वांचल प्रभारी 2022 की सियासी बिसात बिछा रही हैं। राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है उसके मुताबिक प्रियंका को एक बात अच्छी तरह समझ आ चुकी है कि आदिवासियों, अदर ओबीसी, दलित के बूते ही यूपी की सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। सियासी पंडित कहते हैं कि यही वजह रही कि पूर्वांचल प्रभारी बनते ही उन्होंने प्रयागराज से पूर्वांचल की नाव यात्रा शुरू की। वह इस दौरान नाविकों से, दलितों से, पिछड़ों से, सफाईकर्मचारियों से मिलती रहीं। यह दीगर है कि लोकसभा चुनाव में उसका परिणाम नहीं दिखा। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वैसे भी प्रियंका लगातार यह भी कहती रहीं कि वह विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं।
सोनभद्र के उम्भा गांव की घटना
बता दें कि सोनभद्र जिले के उंभा गांव में 17 जुलाई को जमीन विवाद को लेकर ग्राम प्रधान और उसके सहयोगियों ने लोगों के एक समूह पर गोलियों की बौछार कर दी थी। ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त व उसके सहयोगियों ने आदिवासी किसानों के समूह पर फायरिंग कर 10 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इस खूनी संघर्ष में 28 लोग जख्मी हुए हैं। कारण इन किसानों ने 36 एकड़ जमीन देने से इनकार किया था। पीड़ितों के अनुसार ग्राम प्रधान जमीन पर कब्जा करने के लिए 32 ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर अपने करीब 200 लोगों को ले आया था। प्रधान के गुर्गो ने किसानों पर 30 मिनट से ज्यादा समय तक फायरिंग की थी।
प्रियंका ने सबसे पहले लपका
सोनभद्र नरसंहार को सबसे पहले प्रियंका गांधी ने लपका। घटना के दो दिन बाद ही वह निकल पड़ीं पीड़ित परिवार से मिलने। इसके तहत वह बनारस आईं और बीएचयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती घायलों से मिल कर उनका हाल जाना। लेकिन यहां से सोनभद्र जाते नारायणपुर में पुलिस ने उन्हें न केवल रोका बल्कि हिरासत में ले लिया। वह धरने पर बैठ गईँ। सोनभद्र जाने पर अड़ी रहीं। मिर्जापुर प्रशासन उन्हें चुनार किला ले गया जहां 26 घंटे तक सियासत चलती रही। अगले दिन यानी 20 जुलाई को उम्भा गांव के पीड़ित आदिवासी चुनार किला पहुंचे। उनसे मिल कर प्रियंका भावुक हो गईँ। उन्होंने मृतक आश्रितों को 10-10 लाख व गंभीर रूप से घायलों को 1-1 लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। वह धनराशि कांग्रसजनों ने वितरित भी कर दी।
प्रियंका की घोषणा के बाद योगी ने दिखाई तेजी
19 व 20 जुलाई के राजनीतिक खेल के बाद 21 जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हरकत में आए। वह सोनभद्र पहुंचे और मूर्तिया गांव के उम्भा में पीड़ितों से मुलाकात की। करीब एक घंटे तक वह पीड़ित परिवारों के साथ रहे और उन्होंने सरकार की तरफ से हर तरह की मदद का आश्वासन दिया। इस दौरान उन्होंने मृतक के परिवारवालों को 18-8 लाख रुपये मुआवजा और घायलों के परिवारवालों को 2.5 लाख रुपये मुआवजे का भी ऐलान किया।
Published on:
13 Aug 2019 04:30 pm
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