scriptप्रो.युगल किशोर मिक्ष व प्रो.मनुदेव भट्टाचार्या राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित | Prof. Manudev and Pro yugal kishore selected for President award | Patrika News

प्रो.युगल किशोर मिक्ष व प्रो.मनुदेव भट्टाचार्या राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित

locationवाराणसीPublished: Aug 16, 2019 08:17:48 pm

Submitted by:

Devesh Singh

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के है अध्यापक, परिसर में खुशी की लहर

Prof. Manudev and Pro yugal kishore

Prof. Manudev and Pro yugal kishore

वाराणसी. सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो.युगल किशोर मिश्र व प्रो.मनुदेव भट्टाचार्या का चयन राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए किया गया है। परिसर में इस बात की जानकारी मिलते ही हर्ष की लहर व्याप्त हो गयी है। स्वतंत्रता दिवस ही राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चयनित विद्वानों के नाम की घोषणा की गयी थी।
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वेद के प्रकांड विद्वान प्रो.युगलकिशोर मिश्र ने संस्कृत विश्वविद्यालय में लंबे समय तक संस्कृत की सेवा की है। प्रो.मिश्र ने बीएचयू से ही प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद 1995 में बीएचयू के कला विभाग में संस्कृत प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए थे। कुछ दिन बीएचयू में पढ़ाने के बाद 1981 में संस्कृत विश्वविद्यालय में आ गये थे। यहां के वेद विभाग के प्रोफेसर पद पर उन्होंने ज्वाइन किया था। इसके बाद प्रति कुलपति, हेड व डीन विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद वर्ष 2016 को परिसर से रिटायर हुए थे। प्रो.युगल किशोर मिश्र को वर्ष 2008 से 2010 तक राजस्थान संस्कत विश्वविद्यालय (जयपुर) के कुलपति भी रह चुके हैं। प्रो.मिश्र की विद्वता को देखते हुए उन्हें विभिन्न पुरस्कार मिल चुका है। इसमे सरस्वती पुरस्कार, कालिकानंद, हरिहरानंद स्मृति, व्यास सम्मान, कालिकदास के साथ आस्टे्रलिया, नेपाल, इटली, थाईलैंड, सिंगापुर आदि देशों से भी पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष १९९७ में मानव संसाधन व विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय वेद विज्ञान प्रतिष्ठान के सचिव पद पर भी कार्य कर चुके प्रो.मिश्र को राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने की बहुत खुशी है। उन्होंने कहा कि नयी पीढ़ी तक संस्कृत को पहुंचाने के लिए देववाणी को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान में समाहित करना बहुत जरूरी है क्योंकि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।
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व्याकरण के प्रकांड विद्वान है प्रो.मनुदेव भट्टाचार्या
संस्कृत विश्वविद्यालय के ही प्रो.मनुदेव भट्टाचार्या का भी चयन राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए हुआ है। पश्चिम बंगाल के मूल निवासी प्रो.भट्टाचार्या व्याकरण के प्रकांड विद्वान है। प्रो.भट्टाचार्या को शुरू से ही संस्कृत से बहुत लगाव था और संस्कृत पढऩे के लिए ही वह 1957 में काशी आये थे। गोयनका संस्कृत महाविद्यालय में आचार्य करने के बाद पहली नौकरी मिली थी उसके बाद 1983 में सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आकर ज्वाइन किया था। प्रो.भट्टाचार्या ने वर्ष 2008 तक संस्कृत विश्वविद्यालय में अध्यापन कराया था उसके बाद रिटायर हो गये थे। परिसर छोडऩे के बाद आप बीएचयू में अतिथि अध्यापक के रुप में भी कार्य किया। सैकड़ों लेख, किताब, पुस्तक की रचना करने वाले प्रो.मनुदेव को राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने की बेहद खुशी है। उन्होंने कहा कि आज विज्ञान जो खोज करके सामने ला रही है वही खोज हमारे देश के ऋषि-मूनियों से हजारों साल पहले ही कर ली थी। उन्होंने काह कि प्राच्य विद्या का खजाना किताबों व पांडुलिपियों में छिपा हुआ है जिसे दुनिया के सामने लाने की जरूरत है।
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