छोटी उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण निर्मल सिंह ने परिवार का खर्चा चलाने के लिए खेती को चुना। हालांकि निर्मल सिंह ने ट्रिपल एमए, एमएड, एम फिल और पीएचडी तक कर रखा है। उन्हें यूनिवर्सिटी से नौकरी का ऑफर भी आया था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।
दरअसल, निर्मल सिंह खेती के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं और साल 1997 से अब तक खेत में उगी धान की फसल निर्मल सिंह ने कभी मंडी में नहीं बेची। साल 1997 से ही लंदन की टिल्डा राइसलैंड कंपनी से निर्मल सिंह का करार है। उनकी खेत में लगी फसल को कंपनी खरीद लेती है। वो भी महंगे दाम पर। इसी वजह से मंडी में फसल ले जाने का खर्च बच जाता है।
निर्मल सिंह के पास 40 एकड़ जमीन है। 60 एकड़ ठेके पर लेकर वो पूरे 100 एकड़ में हर साल सिर्फ बासमती की ही पैदावार लेते हैं। इस बार भी पूरे 100 एकड़ में बासमती धान की रोपाई का काम अंतिम चरण में है। धान की रोपाई से पहले ट्रैक्टर से खेत को समतल नहीं किया। इससे खर्च की बचत होती है। रोपाई से पहले खेत में पानी छोड़ दिया जाता है, लेकिन ट्रैक्टर कभी नहीं चलाया।
निर्मल सिंह बताते हैं कि इस तकनीक से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। पानी की खपत भी आधी रह जाती है। वे फव्वारा तकनीक से सिंचाई करते हैं। इससे भी खर्च कम होता है। इसके लिए वे खुद दो बार ब्रिटेन हो आए हैं।
निर्मल सिंह के मुताबिक अगर सही ढंग से किया जाए तो खेती से बढ़िया कोई कारोबार नहीं है। किसान निर्मल सिंह की कामयाबी को देख अब दूसरे किसान भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को तरजीह देने लगे हैं।
भुडंगपुर गांव के किसान गुरजीत सिंह ने बताया कि निरक्षरता की वजह से वे अत्याधुनिक तरीके से खेती नहीं कर पा रहे थे। अब खेत में उगी फसल ही महंगे दाम पर बिकने से उन्हें काफी फायदा हुआ है। इसी तरह सरपंच गुरदीप सिंह बताते हैं कि मंडी में बेचने की बजाए अगर घर पर ही फसल के खरीदार आ जाएं तो इससे ज्यादा फायदा और क्या हो सकता है।