बृजेश सिंह के लिए सिकरौरा नरसंहार का मुकदमा गले की हड्डी बनता जा रहा है। पांच लाख के इनामी रहे बृजेश सिंह के उड़ीसा में वर्ष 2008में गिरफ्तार होने के बाद से चले रहे अधिकांश मुकदमों में वह बरी हो चुके हैं। सिकरौरा नरसंहार मुकदमे में बृजेश सिंह को कोर्ट नाबालिग मान लेता तो उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो जाता, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बृजेश सिंह के गिरफ्तार हो जाने के बाद वादिनी हीरावती ने हाईकोर्ट में सिकरौरा नरसंहार में त्वरित सुनवाई की याचिका दायर की थी और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद प्रकरण त्वरित सुनवाई के लिए वाराणसी सत्र अदालत को स्थानातरित किया गया है। इसी बीच बृजेश सिंह ने कोर्ट में याचिका दायर की थी कि नरसंहार के समय वह नाबालिग थे। हाईस्कूल के प्रमाणपत्र में बृजेश सिंह की जन्म तिथि १ जुलाई १९६८ दर्ज है। इसी आधार पर बृजेश सिंह ने घटना के समय नाबालिग होने का दावा किया था। इस पर वादिनी व उनके विधिक पैरोकार राकेश न्यायिक ने नाबालिग होने के प्रार्थना पत्र पर आपत्ति जतायी थी और विभिन्न जगहों से आर्म एक्ट, डीएल, पासपोर्ट व कम्पनी के रजिस्टर का कागजात कोर्ट को उपलब्ध करा कर बृजेश सिंह की जन्मतिथि ९ नवम्बर १९६४ बताया था। हाई स्कूल के प्रमाण पत्र में बृजेश सिंह पुत्र रविन्द्र प्रताप सिंह दर्ज है, जबकि वास्तविकता में बृजेश सिंह पुत्र रविन्द्रनाथ है। न्यायालय में चली लंबी बहस के बाद कोर्ट ने बृजेश सिंह की जन्मतिथि १९६४ माना है, जिसके आधार पर ही कोर्ट ने बृजेश सिंह के नाबालिग होने की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट का निर्णय आने के बाद कचहरी में जुटे बृजेश सिंह के समर्थकों में निराशा छा गयी।
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जाने क्या था सिकरौरा नरसंहार
बलुआ थाना क्षेत्र के सिकरौरा गांव में ९ अप्रैल १९८६ की रात ११ बजे ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव, उनके परिजन सहित सात लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गयी थी। इस घटना में अन्य लोगों के साथ बृजेश सिंह को भी आरोपी बनाया गया है।
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