8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

धान से हुआ मां अन्नपूर्णा का भव्य श्रृंगार, दर्शन के लिए लगा रहा भक्तों की उमड़ी भीड़

किसानों ने धान की फसल मां को अर्पित की, 17 दिन चलने वाले महाव्रत का हुआ समापन

2 min read
Google source verification
Maa Annapurna,Maa Annapurna

Maa Annapurna,Maa Annapurna

वाराणसी. मां अन्नपूर्णा का सोमवार को धान की बालियों से भव्य श्रृंगार किया गया। मां का दर्शन करने के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगी रही। वर्षो पुरानी परम्परा के अनुसार पूर्वांचल के किसान धान की पहली फसल को माता के चरणों में समर्पित करते है। पहले यह परम्परा बंद हो गयी थी लेकिन बाद में प्राचीन परम्परा के अनुसार फिर से धान की बालियों से माता का श्रृंगार शुरू किया गया।
यह भी पढ़े:-आपदा प्रबंधन में सहयोग करेंगे NDRF फ्रेंड्स

माता अन्नपूर्णा का दरबार बेहद जगता पीठ है। खुद महादेव यहां पर माता से अन्न की भिक्षा मांगने आये थे। मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी ने बताया कि मान्यता के अनुसार माता अन्नपूर्णा का धान से श्रृंगार किया जाता है। दिन भर भक्त माता के दर्शन करते हैं। इसके बाद धान को प्रसाद के रुप में भक्तों में बांटा जाता है। मां के प्रसाद के अपने खेत, भंडार या अन्न क्षेत्र में रखने से व्यक्ति को जीवन भर अन्न की कमी नहीं रहती है। 17 दिनों तक चलने वाले महाव्रत का उद्यापन भी हुआ है। किसी भक्त ने मंदिर की 51 व किसी ने 501 फेरी लगा कर मां का अ आशीर्वाद मांगा है। मंदिर के महंत ने बताया कि 17 दिन, 17 गाठ और 17 धागे का यह कठिन व्रत 17 नवम्बर से आरंभ हुआ था। व्रती को एक टाइम एक अन्न का आहार लेना पड़ता है और शुद्ध होकर माता की अराधना करती होती है। इस व्रत में नमक का सेवन निषेध होता है। 17 दिन महाव्रत करने वाले की सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
यह भी पढ़े:-सीनियर सिटीजन के लिए पुलिस ने शुरू की है खास सुविधा, ऐसे मिलेगा लाभ

माता अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने के लिए राजा ने सबसे पहले रखा था व्रत
इस महाव्रत की कहानी बेहद दिलचस्प है। हजारों साल पहले काशी के राजा दिवोदास के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था। जनता में हाहाकार मच गया था। राजा दिवोदास ने धनंजय को कहा कि अकाल समाप्त कराना है तो माता अन्नपूर्णा का प्रसन्न करना होगा। इसके बाद धनंजय ने 17 दिन तक कठिव व्रत किया था जिसके बाद मां अन्नपूर्णा ने दर्शन देकर आशीर्वाद दिया था इसके बाद से आज भी यह महाव्रत रखा जाता है।
यह भी पढ़े:-32 छात्रों को मिलेंगे 58 पदक, दीक्षांत समारोह पांच को