मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप से जुड़ी बच्चों की मौतों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। विवाद की शुरुआत छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश से हुई, जहां सितंबर महीने में 9 बच्चों की मौत हो गई। ये बच्चे ‘कोल्ड्रिफ’ नामक कफ सिरप ले रहे थे, जो तमिलनाडु की Sresan Pharmaceutical कंपनी बनाती है। इस सिरप के सेवन से बच्चों की हालत बिगड़ने के बाद छिंदवाड़ा और नागपुर के अस्पतालों में भर्ती किया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। परिवार वालों का आरोप है कि डॉक्टरों के पर्चे पर दी गई ये दवा जहरीली थी। राजस्थान के सीकर और भरतपुर में भी 3 बच्चों की मौतें हुईं। देशभर में अबतक कुल 12 बच्चों की मौतें कफ सिरप से जुड़ी बताई जा रही हैं, जिनमें नेक्सा डीएस और डेक्स्ट्रोमेथोर्फन युक्त सिरप शामिल हैं।
प्रारंभिक जांच में छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों ने मृत बच्चों की किडनी बायोप्सी में डायएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की मौजूदगी पाई, जो एक विषाक्त औद्योगिक रसायन है और किडनी फेलियर का कारण बनता है। तमिलनाडु सरकार ने कोल्ड्रिफ के सैंपल्स में मिलावट पाई और 1 अक्टूबर से इसकी बिक्री व स्टॉकिंग पर बैन लगा दिया है। लेकिन केंद्र सरकार की टेस्ट रिपोर्ट्स में विरोधाभास है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि दिल्ली के सीडीएससीओ, पुणे के वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट और दूसरी लैब्स के सैंपल्स में DEG या एथिलीन ग्लाइकोल जैसे टॉक्सिन्स नहीं मिले। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी सिरप को सुरक्षित बताया, हालांकि जांच जारी है। लेकिन इस विरोधाभास की वजह से इन रिपोर्ट्स पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य स्तर की जांचें कमजोर हैं या केंद्र की रिपोर्ट्स में देरी हुई?
अब केंद्र सरकार ने 3 अक्टूबर को सभी राज्यों को सख्त एडवाइजरी जारी की है। डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज के अनुसार, 2 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी खांसी-जुकाम की सिरप नहीं देनी चाहिए। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में इनका उपयोग सामान्यतः न हो, और 5 साल से ऊपर के लिए भी सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही सही डोज देनी है। ज्यादातर बच्चों में भाप, गुनगुना पानी और आराम जैसे घरेलू उपायों से खांसी खुद ठीक हो जाती है। स्वास्थ्य संस्थानों को अच्छी गुणवत्ता वाली कंपनियों से दवाएं खरीदने और फार्मास्यूटिकल ग्रेड सामग्री सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य स्तर पर एक्शन तेज हो गया है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कोल्ड्रिफ पर पूरे राज्य में बैन लगाया दिया है और कंपनी के अन्य उत्पादों पर भी रोक की प्रक्रिया शुरू करदी है। जांच के लिए विशेष टीम गठित हुई, जो वितरण चेन और डॉक्टरों की भूमिका की जांच कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा, “दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” वहीं राजस्थान में ड्रग कंट्रोलर को सस्पेंड कर दिया गया है, Kaysons Pharma की दवाओं के वितरण पर रोक लगा दी गई है, 4 अक्टूबर से डोर-टू-डोर सर्वे शुरू हुआ है। राज्य में कई डॉक्टरों और फार्मासिस्ट को निलंबित किया गया है। तमिलनाडु ने कोल्ड्रिफ प्लांट का निरीक्षण किया और सैंपल्स लैब भेजे। महाराष्ट्र में कोडीन-बेस्ड सिरप नष्ट किए गए। सीडीएससीओ ने 19 ड्रग यूनिट्स पर रिस्क-बेस्ड इंस्पेक्शन शुरू किया है।
बता दें कि ये विवाद नया नहीं है। 2022-2023 में गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून में भारतीय कफ सिरप्स से 141 बच्चों की मौतें DEG कंटेमिनेशन से हुईं। उस समय WHO ने अलर्ट जारी किया था, जिसके बाद भारत में Maiden Pharmaceuticals जैसी कंपनियों पर बड़ी जांच हुई। ऐसे में ये घटनाएं भारतीय फार्मा उद्योग की कमजोरियों को उजागर करती हैं जिनमें सस्ते इंडस्ट्रियल ग्रेड केमिकल्स का इस्तेमाल, खराब क्वालिटी कंट्रोल और निर्यात पर सख्त टेस्टिंग की कमी है। ओवर-द-काउंटर दवाओं का दुरुपयोग और बिना प्रिस्क्रिप्शन बिक्री भी समस्या बढ़ा रही है। फिलहाल जांचें जारी हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये नई घटनाएं पुरानी समस्याओं को दोहरा रहीं हैं?