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वीडियो : वाकई रंगीला है राजस्थान, मेहमान जैसा व्यवहार पर्यटकों को खींच लाता है नागौर

राज्य स्तरीय श्री रामदेव पशु मेले में पहले खूब आते थे विदेशी पर्यटक, पर्यटन विभाग मेले में टेंट लगाकर करता था ठहरने व खाने की व्यवस्था, अब केवल निशां बाकी, वर्तमान में आने वाले गिने-चुने पर्यटकों को होटलों में देना पड़ता है महंगा किराया

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नागौर.‘लव इट, वेरी कलरफुल, द पीपल हियर आर वेरी नाइस, आई लाइक द कल्चर ऑफ राजस्थान, पीपल हियर बिहेव लाइक फ्रेंड्स…’ इस प्रकार के कमेंट नागौर के राज्य स्तरीय पशु मेले में घूमने आए विदेशी पर्यटकों के सुनने को मिल रहे हैं। यहां पशुपालकों और विदेशी पर्यटक एक-दूसरे की भाषा भले नहीं समझते हैं, लेकिन जब मिलते हैं तो एक-दूसरे से घुल-मिल जाते हैं और इशारों-इशारों में एक-दूसरे के भाव भी समझ लेते हैं। पर्यटकों ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति के साथ यहां लोगों का अपनापन जैसा व्यवहार उन्हें बार-बार यहां खींच लाता है। पर्यटकों के साथ जयपुर व जोधपुर से आए गाइड ने बताया कि दुनिया के अलग-अलग देशों से आने वाले पर्यटक नागौर मेले में आकर काफी खुश नजर आ रहे हैं, उनसे जब इसकी वजह पूछते हैं तो बताते हैं कि यहां लोग उनके साथ मेहमान जैसा व्यवहार करते हैं, कोई भी परेशान नहीं करता, जबकि अमूमन अन्य स्थानों व खासकर मेलों में पर्यटकों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं होती हैं। ऐसे में यदि पर्यटन विभाग और आरटीडीसी पहले की तरह पर्यटकों के लिए ठहरने सहित अन्य व्यवस्थाएं करें तो नागौर में पर्यटकों की संख्या कई गुना बढ़ सकती है।

पर्यटकों से विभाग ही ढीला तो कैसे आएंगे पावणे

गौरतलब है कि 15-20 साल पहले नागौर सहित मेड़ता व परबतसर के पशु मेलों में पशुओं की संख्या 30-35 हजार तक होती थी, लेकिन सरकारी उदासीनता व अनदेखी के चलते अब मेले सिमटने लगे हैं। पर्यटन विभाग व आरटीडीसी की हालत भी वैसी है। पर्यटकों को यहां लाने के लिए विशेष प्रयास करने की बजाए औपचारिकता पूरी करने तक सीमित हैं। यदि पर्यटन विभाग वापस पहल करे तो पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है। नागौर में मेले के साथ कई ऐसे ऐतिहासिक एवं प्राचीन पर्यटक स्थल हैं, जिनसे पर्यटकों को जोडकऱ अच्छा राजस्व प्राप्त किया जा सकता है।

ऊंट देखने आते हैं पर्यटक

यूएसए से समूह में आए पर्यटकों ने बताया कि उनके कपड़ों पर, टोपी पर, बैग पर, कशीदे आदि पर ऊंट के छापे रहते हैं, इसलिए वे ऊंट को साक्षात देखने के लिए यहां आए हैं। उन्होंने बताया कि नागौर मेले में उन्हें सबसे अच्छी बात यह लगी कि यहां उन्हें किसी ने परेशान नहीं किया। लोगों का व्यवहार अच्छा है और उनके साथ अतिथि की तरह बर्ताव करते हैं। पर्यटकों के साथ आए गाइड नरोतमसिंह ने बताया कि कुछ मेलों में पर्यटकों से छेड़छाड़ होती है, उन्हें परेशान किया जाता है, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है, इसलिए पर्यटक यहां ज्यादा रुकते हैं। एक अन्य समूह के पर्यटकों ने बताया कि राजस्थान की संस्कृति में रंग भरे हैं, यह वाकई रंगीला है, यहां के लोग बहुत अच्छे हैं।

स्टाफ की कमी, पद भरे तो बने बात

नागौर के राज्य स्तरीय रामदेव पशु मेले में पिछले वर्षों की तुलना में कम हुई विदेशी पर्यटकों की संख्या को लेकर पर्यटन विभाग के पर्यटक अधिकारी प्रद्युमनदैथा से बात की तो उन्होंने बताया कि पहले पर्यटकों के ठहरने के लिए राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) की ओर से व्यवस्था की जाती थी। इसके अलावा आरटीडीसी की होटल भी संचालित होती थी, जो करीब 16-17 साल से बंद है। नागौर में स्वीकृत पर्यटन विभाग के कार्यालय को लेकर उन्होंने बताया कि स्टाफ की कमी है, ऐसे में अजमेर कार्यालय में भी कई पद रिक्त पड़े हैं।

राजस्थानी संस्कृति ने मनमोहा

मैं पिछले लम्बे समय से भारत भ्रमण पर आ रहा हूं। भारत भ्रमण के दौरान राजस्थान जरूर आता हूं। मुझे राजस्थान की संस्कृति और यहां के किसानों का व्यवहार बहुत अच्छा लगा। मैं पिछले सात दिन नागौर मेले में हूं। मैं यहां किसी होटल में नहीं रुककर अपने दोस्त के घर रुका हूं। मैं यहां आकर बहुत खुश हूं। मेरा मानना है कि यहां की सरकार को पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।

– जूलियन, आस्ट्रेलियन पर्यटक