
हनुमानजी क्यों हैं प्रमुख देव? वे सच में वानर थे? जवाब जान आस्था और बढ़ जाएगी
नई दिल्ली। संकटमोचन हनुमान को कौन नहीं जानता, भक्तों के हर कष्ट को बस नाम लेने से ही हर लेते हैं प्रभु। हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। पहला यह कि वे सच आयरनमैन हैं, दूसरा यह कि इतने ताकतवर होने के बावजूद वे ईश्वर के प्रति समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर इस धरती पर विराजमान हैं। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती इसीलिए उन्हें प्रमुख देव माना जाता है।
हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था इसका मतलब आज से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई।
इस जाति का नाम कपि था। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है।
यह भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। असल में, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है। जीवन का सार हनुमान जी के संस्कृति में 108 नाम हैं और हर नाम का मतलब उनके जीवन के अध्ययों का सार बताता है।
Published on:
31 Oct 2018 03:37 pm
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