
एक न्यूक्लियर बम गिरे और कोई जिंदा बच जाए ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन कॉकरोच एक ऐसा प्राणी है जो इस हमले से बच सकता है। जी हां ये सच है। दूसरे विश्व युद्ध के हमलों में एकमात्र कॉकरोच बच निकले थे। आज नेशनल साइंस डे है और हम आपको इसके पीछे के विज्ञान को समझाते हैं
एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी और तब से ये बात चर्चित है कि कॉकरोच न्यूक्लिअर अटैक झेल सकते हैं। जिस बम के हमले से पूरा शहर, पूरा देश, पूरी सभ्यता ख्तम हो गई वहीं एक प्राणी सिर्फ बच गया। चलिए इसके पीछे के विज्ञान को समझते हैं।
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क्या है इसके पीछे का विज्ञान
जिस तरह की न्यूक्लिअर रेडियेशन से लोग जापान में मारे गए थे, उसे सचमुच आधे कॉकरोच झेल सकते हैं, लेकिन अगर रेडियेशन की इंटेंसिटी दस गुना बढ़ा दी जाए तो सारे कॉकरोच मर जाएंगे। दरअसल, इनके शरीर के गठन की वजह से ये ऐसा कर पाते हैं। हर जीव का शरीर कई सेल्स (cells) से बना होता है, ये सेल्स हमेशा बढ़ते रहते हैं, और पुराने मरते रहते हैं। इंसानों के शरीर के सेल्स तेजी से डिवाइड होकर बढ़ते रहते हैं,न्यूक्लिअर रेडियेशन सबसे ज्यादा उन शरीरों को नुकसान पहुंचाते हैं जिनकी सेल साइकिल तेज चलती हो।
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जहां इंसान के शरीर में सेल्स हर समय तेजी से विभाजित होते रहते हैं, कॉकरोच के शरीर में ऐसा हफ्ते में एक बार होता है। इसलिए कॉकरोच का शरीर एक हद तक न्यूक्लियर रेडियेशन से सुरक्षित रहता है
Published on:
27 Feb 2024 03:47 pm
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