2006 में चीन के कूटनीतिक सहयोग के कारण हांगकांग में स्वास्थ्य निदेशक मार्गरेट चैन 12 उम्मीदवारों को पीछे छोड़ डब्लूएचओ के महानिदेशक बने। 2012 में चैन फिर निर्विरोध चुन लिए गए। तब दूसरे प्रतिभागियों ने यह समझ लिया कि चीन के समर्थन के बिना ये निर्वाचन संभव नहीं है। पांच वर्ष बाद 2017 में चीन का प्रभाव नजर नहीं आया और इथोपिया के स्वास्थ्य मंत्री टेड्रोस अधेनोम घेब्रियेसस अफ्रीकी देशों के समर्थन से डब्लूएचओ के प्रमुख बने। लेकिन टेड्रोस ने बीजिंग से भी सहयोग और समर्थन मांगा। इसके बदले डब्लूएचओ की जीत के अगले ही दिन टेड्रोस ने ‘वन चाइना’ नीति पर चीन का समर्थन किया। यह संकेत है चीन की मर्जी के बिना डब्लूएचओ ताइवान को आमंत्रित नहीं करेगा। जुलाई 2018 में टेड्रोस बीजिंग में चीनी अधिकारियों से चर्चा के लिए कि संगठन को और मजबूत कैसे बनााय जा सकता है।
डब्लूएचओ पर चीन का प्रभाव कोरोनावायरस प्रकोप के दौरा स्पष्ट हो गया। सूचना में विलंब के लिए ट्रंप ने चीन और डब्लूएचओ को फटकार लगाई। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमारी के प्रसार को रोकने में अपनाए गए चीन के मानकों की खूब तारीफ की है। हालात ऐसे हैं कि चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन में निर्णायक हैसियत में आ सकता है। सिर्फ अमरीका का संगठन के साथ बने रहना ही इस परिस्थिति को टाल सकता है। लेकिन यदि अमरीका ने संगठन का साथ छोड़ा तो डब्लूएचओ नेतृत्व और समर्थन के लिए चीन का रुख करेगा। एक ओर जहां अमरीका ने डब्लूएचओ का बजट कम करने की घोषणा की है तो चीन ने कोरोना से निपटने के लए डब्लूएचओ को 30 मिलियन डॉलर की मदद दी है।