
No Christmas celebration in Jesus Christ Birthplace Palestine Bethalham
Christmas Day: दुनिया के सबसे बड़े ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार क्रिसमस पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है। ईसा मसीह यानी जीज़स क्राइस्ट का जन्म इसी दिन 25 दिसंबर को हुआ था। लेकिन गाजा (Gaza) में युद्ध के चलते जीज़स क्राइस्ट यानी ईसा मसीह के जन्म स्थान फिलिस्तीन (Palestine) में सन्नाटा छाया हुआ है। फिलिस्थीन के बेथलहम को यीशू (Jesus Christ) का जन्म स्थान माना गया है लेकिन यहां भी बीते मंगलवार को क्रिसमस की पूर्व संध्या पर सूनापन दिखाई दिया। हालांकि आमतौर पर पहले क्रिसमस पर बेथलहम में उत्साह दिखाई देता था। यहां मैंगर स्क्वायर भी बगैर लाइट्स के सूना रहा।
वहीं फलस्तीनी सुरक्षा बलों ने ‘नेटिविटी चर्च’ के पास बैरिकेडिंग लगा दिए। बता दें कि नेटिविटी चर्च को ही ईसा मसीह का जन्म स्थान माना गया है। जीज़स क्राइस्ट कौन थे, उनका जन्म किस उद्देश्य के लिए हुआ था और क्यों उनका जन्म दिन एक पेड़ के नाम पर मनाया जाता है, ऐसे कई सवाल लोगों के मन में आते हैं, तो आपके इन सारे सवालों का जवाब हम दे रहे हैं।
ईसाई धर्म के लोग जीज़स क्राइस्ट को अपना ईश्वर, भगवान मानते हैं। जीज़स क्राइस्ट को यीशू भी कहा जाता है। ईसाई धर्म की मान्यताओं के मुताबिक यीशू का जन्म 4-6 ईसा पूर्व फिलिस्तीन के बेथलहम शहर में हुआ था। हालांकि इनका जन्म 25 दिसंबर को ही हुआ था, इसके बारे में कई इतिहासकारों में मतभेद हैं। इसलिए इनके जन्म की सटीक तारीख नहीं बताई जा सकती। मान्यताओं के मुताबिक यीशू की मां का नाम मरियम और पिता का नाम युसूफ था। यीशू का जन्म एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था, जिसमें सबसे अहम था ईश्वर को इंसानों के बीच प्रकट करना। ईसाई मान्यताओं के मुताबिक उनका जन्म चमत्कारी रूप से हुआ था। उनकी मां मरियम को पवित्र आत्मा (Holy Spirit) से गर्भधारण हुआ था।
जीज़स को 33 वर्ष की आयु में रोमन शासकों द्वारा क्रूस पर चढ़ा दिया गया। ईसाई मान्यता के अनुसार, उनकी मृत्यु के तीन दिन बाद वे पुनर्जीवित हो गए और यह घटना मानवता के पापों से मुक्ति का प्रतीक है। जीज़स ने पारंपरिक धार्मिक रीति-रिवाजों और यहूदी कानूनों को चुनौती दी थी। जो उस समय के धार्मिक नेताओं को पसंद नहीं आया।
जीजस ने खुद को मसीहा घोषित किया था। ये दावा यहूदी धार्मिक नेताओं को ईशनिंदा (blasphemy) लगा। उन्होंने यहूदी धर्म की कठिन परंपराओं के बजाय प्रेम, दया और क्षमा पर जोर दिया, जिससे पारंपरिक नेताओं की शक्ति और प्रभाव को खतरा महसूस होने लगा और उन्होंने यीशू को सजा देने का फैसला लिया।
जीज़स के बढ़ते समर्थकों ने रोमन शासकों को चिंता में डाल दिया। उन्हें लगा कि जीज़स रोमन साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं। क्योंकि जीज़स ने यरूशलेम के मंदिर में व्यापार और पैसों के लेन-देन का विरोध किया था। उन्होंने व्यापारियों को मंदिर से बाहर कर दिया और इसे "चोरों की गुफा" कहा। इस घटना ने धार्मिक नेताओं को और क्रोधित कर दिया।
जीज़स क्राइस्ट को उनके शिष्य यहूदा इस्करियोत (Judas Iscariot) ने धोखे से गिरफ्तार करा दिया। उन्हें 30 चांदी के सिक्कों के बदले धार्मिक नेताओं को सौंप दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और धार्मिक परिषद के सामने पेश किया गया। जीज़स पर ईशनिंदा और यहूदियों के धार्मिक कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। उन्होंने रोमन गवर्नर पोंटियस पीलातुस (Pontius Pilate) से जीज़स को सजा ए मौत देने की मांग की। लेकिन पीलातुस को जीज़स के खिलाफ आरोपों में कोई ठोस आधार नहीं मिला, लेकिन भीड़ के दबाव और शांति बनाए रखने के लिए उन्होंने जीज़स को क्रूस पर चढ़ाने का ऐलान कर दिया।
क्रूस पर चढ़ाना, रोमन साम्राज्य में सबसे क्रूर और अपमानजनक सजा मानी जाती थी, जो अक्सर विद्रोहियों और अपराधियों को दी जाती थी।
क्रिसमस ट्री एक सदाबहार पेड़ (Evergreen tree) है। ईसाई धर्म की मान्यताओं के मुताबिक इसे जीवन और पुनर्जन्म का प्रतीक माना गया है। इसे जीज़स के जन्म के उत्सव में सजाया जाता है। ये परंपरा प्राचीन यूरोपीय रीति-रिवाजों से प्रेरित है है। यहां ये सदाबहार पेड़ क्रिसमस सर्दियों के मौसम में जीवन और उम्मीद का प्रतीक माने जाते हैं।
Published on:
25 Dec 2024 01:36 pm
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