
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना। (फोटो: ANI)
Sheikh Hasina Death Sentence: बांग्लादेश की अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा (Sheikh Hasina Death Sentence) सुना दी है। यह फैसला उनकी देश से गैर-मौजूदगी में आया है। कोर्ट ने उन्हें 2024 के छात्र आंदोलन को कुचलने के लिए हुई 1400 से ज्यादा मौतों का जिम्मेदार ठहराया (Bangladesh Student Crackdown Verdict) है। हसीना अभी भारत में हैं और फिलहाल यह सजा सिर्फ कागजों पर है। हसीना ने इस फैसले को “राजनीतिक बदला” बताया और कहा कि उन्होंने किसी को मारने का आदेश नहीं दिया। लेकिन इसके उलट बांग्लादेश की सड़कों पर लोग जश्न मना रहे हैं, उनके लिए यह 15 साल के जुल्म का हिसाब है।
गौरतलब है कि हसीना ने 15 साल तक बांग्लादेश पर शासन किया। आरोप है कि जो भी उनके खिलाफ बोला, उसे जेल भेजा या गायब कर दिया गया अथवा मार डाला गया। उनकी सबसे बड़ी दुश्मन खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के नाम पर बरसों जेल में रखा गया। नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस को भी झूठे मुकदमे में फंसाया गया। जमात-ए-इस्लामी को चुनाव लड़ने से रोका गया और बाद में बैन कर दिया गया।
सुरक्षा बलों ने हसीना के राज में हजारों लोगों को बिना मुकदमे के मार डाला। अमेरिका ने उनकी कुख्यात RAB यूनिट पर पाबंदी लगा दी थी। वहीं फोटो जर्नलिस्ट शाहिदुल आलम को सिर्फ सरकार की आलोचना करने पर 100 दिन जेल में रखा गया।
सन 2024 में जब छात्रों ने सरकारी नौकरियों में कोटे के खिलाफ आवाज उठाई तो हसीना ने बात करने के बजाय गोली चलवा दी। ड्रोन, हैलीकॉप्टर, असली गोलियां – सब इस्तेमाल हुए। नतीजा यह हुआ कि पूरा देश सड़कों पर उतर आया और हसीना को भाग कर भारत आना पड़ा। अब बांग्लादेश हसीना के भारत से प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है।
हसीना ने बांग्लादेश को आर्थिक रूप से बहुत आगे बढ़ाया, यह सच है। गरीबी घटी, जीडीपी बढ़ा, कपड़ों का निर्यात दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंचा, लेकिन यह तरक्की सिर्फ ऊपर वालों तक सीमित रही। आम आदमी को लोकतंत्र, बोलने की आजादी, निष्पक्ष चुनाव – कुछ नहीं मिला। सन 2018 में उन्होंने 96% वोट “जीते” थे, जिसे सबने धांधली कहा।
अब सवाल यह है कि नई अंतरिम सरकार क्या करेगी? अभी उसने भी अवामी लीग पर बैन लगा रखा है। यानि हसीना की पार्टी के लाखों समर्थकों का वोट का अधिकार छीन लिया गया। गैर-कानूनी हत्याएं हुईं और लोगों के गायब होने का सिलसिला अब तक जारी है। यानि पुराना रोग नई सरकार में भी दिख रहा है।
बांग्लादेश में सन 2026 में चुनाव होने वाले हैं। अगर यूनुस सरकार भी बदले की भावना से चलेगी, विरोधियों को कुचलेगी, संस्थाओं को कमजोर रखेगी – तो बांग्लादेश हसीना के युग से बाहर नहीं निकल पाएगा। हसीना को सजा देना आसान है, उनकी बनाई गई बीमार व्यवस्था को ठीक करना सबसे मुश्किल काम है।
लोगों का गुस्सा समझ में आता है। सन 15 साल का दर्द एक दिन में नहीं मिटेगा। लेकिन अगर बदला ही लिया जाएगा तो कल को कोई तीसरी हसीना तैयार हो जाएगी। असली जीत तब होगी, जब बांग्लादेश में कोई भी नेता दोबारा इतनी ताकत न जुटा सके कि लोकतंत्र को कुचल दे।
बहरहाल यह वक्त हिसाब चुकता करने का नहीं, नई और मजबूत नींव डालने का है। बांग्लादेश पास होगा या फेल – यह अगले कुछ महीनों में पता चल जाएगा।
Published on:
20 Nov 2025 03:32 pm
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