
Vladimir Putin chooses between Donald Trump
US-Russia relations: अमेरिका और रूस के रिश्ते (US-Russia relations) हमेशा से ही बहुत पेचीदा रहे हैं, लेकिन कुछ विशेष घटनाओं ने एक महीने में इनके समीकरण बदल दिए। एक महीने पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडन ( Joe Biden) के कार्यकाल में उनका रूस के प्रति नजरिया सख्त और चुनौतीपूर्ण था, खासकर रूस की यूक्रेन में सैन्य आक्रमण के बाद यह और सख्त हो गया। अब एक महीने बाद डोनाल्ड ट्रंप ( Donald Trump) की सरकार बनने से अमेरिका का रूस के लिए नजरिया एकदम बदल गया। वैसे ट्रंप की सरकार बनने के बाद अमेरिका का रूस के प्रति नजरिया मिश्रित रहा, क्योंकि ट्रंप ने रूस के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की, जबकि कांग्रेस और अन्य अधिकारियों ने रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाने की वकालत की। अतीत में देखें तो 75 बरस पहले, यानी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यूएस और रूस के रिश्ते सहयोगी थे, क्योंकि दोनों ने मिलकर नाजी जर्मनी को हराया था, लेकिन बाद में विचारधारा के मतभेदों के कारण तनाव बढ़ गया। शीत युद्ध (Cold War) के बाद 1990 के दशक में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो अमेरिका ने रूस को सहयोगी के रूप में देखना शुरू किया। परमाणु निरस्त्रीकरण और वैश्विक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा। हालांकि, यह बदलाव एक दिन या एक महीने में नहीं हुआ, बल्कि कई दशकों की राजनीति और घटनाओं का परिणाम था।
करीब 75 साल पहले यानी 1940 के दशक के अंत में अमेरिका और सोवियत संघ के रिश्ते सहयोगी थे, क्योंकि दोनों ने मिलकर द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी को हराया था, लेकिन युद्ध के बाद, उनके विचारधारा के स्तर पर मतभेद सामने आए। अमेरिका पूंजीवाद और लोकतंत्र का समर्थक था, जबकि सोवियत संघ साम्यवाद का पक्षधर था। इस कारण शीत युद्ध (Cold War) की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों देशों के बीच तनाव और प्रतिस्पर्धा बढ़ी, जो अगले चार दशकों तक जारी रही।
रूस और अमेरिका के बीच कई समझौते हुए, जिनमें परमाणु निरस्त्रीकरण पर किए गए समझौते प्रमुख थे, जैसे 1963 में "Partial Nuclear Test Ban Treaty" और 1972 में "SALT" (Strategic Arms Limitation Talks)। ये समझौते दोनों देशों के बीच अस्थायी सहयोग का प्रतीक थे, लेकिन शीत युद्ध के दौरान मतभेदों की वजह से रिश्ते बिगड़ गए।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने अपनी वैश्विक शक्ति बढ़ाने की कोशिश की। हालांकि, उनके राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण में अंतर था। अमेरिका पूंजीवादी और लोकतांत्रिक व्यवस्था का पक्षधर था, जबकि सोवियत संघ साम्यवादी व्यवस्था फैलाने का इच्छुक था। सन 1947 में अमेरिका ने ट्रूमैन डॉक्ट्रिन की घोषणा की, जिसके तहत वह दुनिया भर में साम्यवाद का प्रसार रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की नीति पर चला। नतीजतन दोनों देशों के बीच शीत युद्ध शुरू हुआ, जिसमें सैन्य, राजनीतिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा रही।
सोवियत संघ ने सन 1962 में क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कीं, जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव बढ़ा। क्यूबा मिसाइल संकट ने दोनों देशों को परमाणु युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया , लेकिन आखिर समझौते के बाद यह संकट टला।
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सैन्य और परमाणु हथियारों की दौड़ चली, जिसमें दोनों देशों ने विशाल हथियारों का जखीरा तैयार किया। दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की होड़ स्पेस रेस और न्यूक्लियर आर्म्स रेस, वैश्विक राजनीति में प्रभावी रही। अमेरिका ने नाटो गठबंधन और सोवियत संघ ने वारसा पैक्ट बनाया।
सन 1985 में मिखाइल गोर्बाचेव के राष्ट्रपति बनने के बाद सोवियत संघ में बड़े बदलाव आए। उन्होंने ग्लास्नोस्ट यानि खुलापन Glasnost) और पेरेस्त्रोइका (perestroika ) जैसे सुधार शुरू किए। इसका उद्देश्य सोवियत संघ की राजनीति और अर्थव्यवस्था को सुधारना था। हालांकि, यह सुधार प्रक्रिया स्थिर नहीं रही और ये हालात सोवियत संघ के विघटन का कारण बने।
सोवियत संघ का सन 1991 में विघटन हुआ, जब सोवियत संघ के कई गणराज्यों रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने स्वतंत्रता की घोषणा की। वहीं 8 दिसंबर 1991 को बेलवेज समझौता के तहत सोवियत संघ का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया और 25 दिसंबर को मिखाइल गोर्बाचेव ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। इस विघटन के बाद, रूस और अन्य गणराज्य स्वतंत्र राष्ट्र बन गए और शीत युद्ध का अंत हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट, सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने याल्टा सम्मेलन (Yalta Conference) में मुलाकात की। इस सम्मेलन में युद्ध के बाद यूरोप के पुनर्निर्माण पर चर्चा की गई थी। हालांकि, युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़े, जिससे शीत युद्ध की शुरुआत हुई।
सन 1963 में दोनों देशों ने Partial Nuclear Test Ban Treaty पर हस्ताक्षर किए, जिससे परमाणु परीक्षणों को भूमिगत किया गया। यह समझौता दोनों देशों के बीच एक अस्थायी सहयोग का प्रतीक रहा।
वियतनाम युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ की विचारधाराएं आपस में टकराईं। अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम और सोवियत संघ ने उत्तर वियतनाम का समर्थन किया। इससे दोनों देशों के रिश्ते और तनावपूर्ण हो गए।
अमेरिका और रूस ने शीत युद्ध के बाद, परमाणु हथियारों की संख्या सीमित करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जैसे START (Strategic Arms Reduction Treaty) और Salt Talks। इन समझौतों का उद्देश्य परमाणु हथियारों का प्रसार नियंत्रित करना था।
सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस और अमेरिका के रिश्ते एक नई दिशा में मुड़ गए। रूस ने पश्चिमी देशों के साथ बेहतर रिश्ते कायम करने की कोशिश की, लेकिन बहुत सी समस्याओं की वजह से रिश्ते प्रभावित हुए। कुछ प्रमुख कारणों में शामिल थे:
रूस में ग्लास्नोस्ट और पेरेस्त्रोइका के तहत किए गए सुधारों ने राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता की दिशा में कदम बढ़ाया, लेकिन इन सुधारों ने सोवियत संघ को कमजोर कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, रूस के लिए पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने की संभावना बन गई, हालांकि यह सहयोग स्थिर नहीं था।
सन 1990 के दशक में रूस की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही थी। पश्चिमी देशों ने रूस के साथ सहयोग बढ़ाया, लेकिन आर्थिक सुधारों में कठिनाइयाँ और भ्रष्टाचार के कारण रूस की स्थिति में स्थिरता नहीं आई।
बहरहाल रूस और अमेरिका के रिश्तों में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन कई कारणों से यह सहयोग स्थिर नहीं रह सका। दोनों देशों के रिश्तों में कभी सहयोग, कभी संघर्ष और कभी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली है, जो वैश्विक राजनीति को प्रभावित करता रहा है।
Updated on:
22 Feb 2025 01:15 pm
Published on:
22 Feb 2025 07:13 am
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