
फ़िलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास। ( फोटो:ANI.)
Palestinian Compensation Demand UK: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ओर से फिलिस्तीन(Keir Starmer Palestine) को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता (UK Palestine recognition) देने के बाद, ब्रिटेन को फिलिस्तीनी प्राधिकरण की ओर से 2 ट्रिलियन पाउंड के भारी मुआवजे की मांग (Palestinian compensation demand) का सामना करना पड़ रहा है। यह रकम ब्रिटेन की कुल अर्थव्यवस्था के बराबर है और सन 1917 से 1948 के बीच ब्रिटिश शासन के दौरान हुए कथित अन्यायों पर आधारित है। उस समय ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर शासन किया था और 1917 की बाल्फोर घोषणा में यहूदियों के लिए एक मातृभूमि का वादा किया था, जिससे फिलिस्तीनी अरब आबादी में गहरा असंतोष फैला था।
फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने अंतरराष्ट्रीय कानून का हवाला देते हुए इस मुआवजे की मांग की है। उनका कहना है कि ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुई गलतियों और ज़मीन की हानि के लिए उचित मुआवजा मिलना चाहिए। हालांकि, यह मांग ब्रिटेन के पहले के मुआवजे के समझौतों से कहीं ज्यादा भारी है, जिससे ब्रिटेन की वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं। इस मामले ने ब्रिटिश राजनीति को दो खेमों में बाँट दिया है।
ब्रिटेन के छाया गृह सचिव रॉबर्ट जेनरिक ने इस मुआवजे की मांग को “अनैतिहासिक बकवास” बताया है और कहा है कि यह करदाताओं के पैसे को खतरे में डालने वाली बात नहीं है। वहीं, कुछ लेबर पार्टी के सांसद मुआवजे के समर्थन में हैं। ब्रिटिश सरकार ने भी साफ किया है कि फिलिस्तीन को दी गई मान्यता सिर्फ प्रतीकात्मक है और इससे कोई वित्तीय दायित्व जुड़ा हुआ नहीं है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की मुआवजे की मांग पूरी तरह से न्यायिक रूप से सफल होना मुश्किल है। लंबा समय बीत जाने, संप्रभुता की रक्षा और सीधे तौर पर नुकसान का प्रमाण न होने के कारण यह दावा ठुकराया जा सकता है। लेकिन राजनीतिक रूप से यह मामला बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि यह एक प्रतीकात्मक कदम को एक बड़े विवाद में बदल सकता है।
ब्रिटेन के बाद अब कनाडा में भी इसी प्रकार की बहस शुरू हो गई है। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने बिना संसद की मंजूरी लिए फिलिस्तीन को मान्यता देने का प्रस्ताव रखा है। यह कदम आलोचकों के बीच विवादित रहा है, क्योंकि इससे इज़राइल के साथ कनाडा के संबंधों में तनाव आ सकता है। आलोचकों का कहना है कि यह एक राजनीतिक निर्णय था, जो सुरक्षा और कूटनीतिक सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
बहरहाल इस मुद्दे पर कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आतंकवाद को बढ़ावा देना शांति की दिशा में नहीं है। वे मानते हैं कि बंदी बने बंधकों की स्थिति में फिलिस्तीन को मान्यता देना स्थिरता को बढ़ावा नहीं देगा। ब्रिटेन के अनुभव भी इस बात को दर्शाते हैं कि ऐसे विवाद खतरनाक हो सकते हैं और इनके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं।
इस मामले का अंतरराष्ट्रीय असर भी नजर आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की पूर्व संध्या पर फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, माल्टा, मोनाको और अंडोरा जैसे देशों ने भी फिलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है। इस कदम से फिलिस्तीन के लिए वैश्विक समर्थन बढ़ रहा है।
यह साफ है कि मान्यता एक राजनीतिक संकेत है, लेकिन इसके परिणाम बहुत वास्तविक और गहरे हो सकते हैं। इस विवाद ने ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों की नीतियों और उनकी विदेश नीति को चुनौती दी है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के फैसले सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं रहेंगे, बल्कि वे राजनीतिक और कूटनीतिक गतिशीलता को भी बदल देंगे। (इनपुट: एएनआई.)
Updated on:
23 Sept 2025 06:23 pm
Published on:
23 Sept 2025 06:22 pm
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