
आगरा। मुश्किल नहीं है कुछ भी गर ठान लीजिए...। इस पंक्ति को चरितार्थ किया है आगरा की डॉ. हृदेश चौधरी ने। उन्होंने गैर सरकारी संगठन ‘आराधना’ के माध्यम से उन बच्चों की आराधना शुरू की जिनकी ओर समाज देखता तक नहीं है। लोहपीटा परिवार के बच्चे हैं ये। कुछ झुग्गियों में रहते हैं। इनके लिए घुमंतू पाठशाला चलाई। इन्हें भिक्षा से शिक्षा की ओर उन्मुख कर दिया। आज घुमंतू पाठशाला इतनी लोकप्रिय है कि देशभर से एमबीए छात्र आकर सीख रहे हैं कि यह चमत्कार कैसे कर दिया। यह काम बिना किसी सरकारी मदद के किया है। अपने बूते। इतना समर्पण कि सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम परसन ऑफ द वीक Person of the week में हमारी अतिथि हैं डॉ. हृदेश चौधरी। आइए जानते हैं उनके बारे में।
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कैसे की शुरुआत
आपने सड़क किनारे एक गाड़ी में परिवार लेकर रहने वाले लोग देखे होंगे। इन्हें गाड़िया लुहार कहा जाता है। ये महाराणा प्रताप की सेना के लिए हथियार बनाया करते थे। जब महाराणा प्रताप जंगल में आ गए तो इन्होंने भी आजीवन घुमंतू जीवन जीने की सौगंध ली, जिसे आज भी निभा रहे हैं। एक दिन डॉ. हृदेश चौधरी की नजर इनके बच्चों पर पड़ी तो उनका हृदय द्रवित हो गया। फिर विचार आया कि इनके जीवन में शिक्षा का उजियारा कैसे लाया जा सकता है। परिवार में गईं। ना-नुकुर हुई। खूब समझाया। गाड़ी के नीचे बैठकर पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बात बनती गई। फिर उन्होंने अपने घर में ही बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। अब तो पूरी क्लास सकती है। बच्चों को स्कूल में दाखिला कराया जाता है। सारा व्ययभार डॉ. हृदेश चौधरी उठा रही हैं।
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अपने घर में चला रहीं पाठशाला
घुमन्तु पाठशाला की संस्थापक डॉ हृदेश चौधरी का संकल्प है कि वे समाज के सर्वाधिक उपेक्षित इस घुमंतू समाज के बच्चों को विधिवत शिक्षा प्रदान करके उनको समाज की मुख्यधारा में शामिल करेंगी। आराधना संस्था की स्कूल वैन सुबह 8 बजे तक शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर इनकी झोपड़ - झुग्गियों से बच्चों को लेकर आती है और दोपहर 2 बजे तक आराधना भवन (सिकंदरा-बोदला रोड, निकट कारगिल पेट्रोल पम्प) में संचालित घुमन्तु पाठशाला में इनको शिक्षा प्रदान की जाती है।
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पहचान पत्र बनवाए
ताजनगरी में सड़क के किनारे करीब 500 गाड़िया लुहार जाति के परिवार निवास करते हैं और वो सभी सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। इन परिवारों के आधार कार्ड और वोटर कार्ड बनवाने में भी आराधना संस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. हृदेश चौधरी के नेतृत्व में इन परिवारों को सरकारी लाभ दिलाने की पहल भी की गई किन्तु सरकारी अमले की उदासीनता के चलते यह संभव नहीं हुआ। फिर उन्होंने अपने स्तर से ही कुछ लोगों का सहयोग लेकर इन परिवारों को जरूरत का सामान मुहैया कराया। उनके इस पुनीत कार्य को सराहते हुए अनेक बड़ी संस्थाओं, समाचार पत्रों और जिला प्रशासन ने उनको सम्मानित भी किया है।
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इंटर्नशिप करने आ रहे
घुमंतू पाठशाला में पूरे देश के छात्र प्रशुक्षिता (इंटर्नशिप), शोध और अध्ययन करने आ रहे हैं। इस समय एनएमआईएमएस कॉलेज मुंबई के रोहित पाठक और प्रियंका करीरा आए हुए हैं। सिम्बोसिस लॉ कॉलेज नागपुर से यश पांडे और रुद्र शर्मा ने नवम्बर माह में, दून कॉलेज से कृतिका सिंघल ने दिसम्बर में इंटर्नशिप की थी। इग्नू, दिल्ली से एमएसडब्ल्यू की दो छात्राएं आई हैं। घूमंतू पाठशाला की धूम विदेश में भी है। हाल ही में अमेरिका से शालीन अपनी पत्नी हरिका के साथ आए। पाठशाला के बच्चों के साथ अपना समय गुजारा। संस्था की अन्य गतिविधियों की जानकारी ली। आराधना संस्था प्रतिवर्ष नए साल में गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए एक कपड़ा मेला का आयोजन करती है, जिसमें संस्था के सदस्यों के घरों से एकत्रित पुराने साफ सुथरे और ऊनी कपड़े एकत्रित करके वितरित किये जाते हैं। साथ ही साहित्यिक और विभिन्न त्योहारों पर कार्यक्रम होते रहते हैं।
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पत्रिकाः आपको इस काम से मिल क्या रहा है?
हृदेश चौधरीः लोहपीटा परिवार पर नजर पड़ी तो कदम रुक गए। बात की तो पता चला कि सदियों से कोई बच्चा नहीं पढ़ा। काफी समझाया तो सफलता मिली। आर्थिक अभावों के कारण स्कूल नहीं जा सके हैं, उन्हें पढ़ाना है। हम सामाजिक मूल्यों की ओर आगे बढ़ रहे हैं। लोहपाटी परिवारों में पहली पीढ़ी है, जो आराधना के माध्यम से पढ़ रही है।
पत्रिकाः सवाल ये है कि आपको मिला क्या?
हृदेश चौधरीः संतुष्टि सबसे बड़ी चीज है। आप बहुत से काम कर लें, लेकिन संतुष्टि नहीं है तो सब बेकार है। ये बच्चे हमारे देश का भविष्य है।
पत्रिकाः आपके अभियान पर शोध के लिए बच्चे बाहर से आ रहे हैं, ऐसा है क्या?
हृदेश चौधरीः यह शहर के लिए गर्व की बात है कि प्रतिष्ठित संस्थानों से बच्चे यहां आकर इंटर्नशिप कर रहे हैं। एक-एक माह के लिए आते हैं। वे खुश होते हैं कि ऐसे बच्चे हैं, जो पहले कभी पढ़े ही नहीं हैं। बच्चों के माता-पिता से मिलने जाते हैं।
पत्रिकाः आप जाट क्षत्राणी महासभा चला रहे हैं, इसके पीछे क्या उद्देश्य है?
हृदेश चौधरीः हम सर्वसमाज के लिए काम करते हैं तो हमारी दायित्व बन जाता है कि समाज के लिए भी कुछ करें। समाज के लोगों की भी उम्मीद बन जाती है हमसे। जाट समाज के ऐसे बच्चे जो 90 फीसदी से अधिक अंक लाते हैं, तो उनका सम्मान करते हैं।
पत्रिकाः आप साहित्य में रुचि रखते हैं, आपकी पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है, आपकी कविताओं का विषय क्या है?
हृदेश चौधरीः मेरे काम करने का विषय शिक्षा है और कविता का विषय देशप्रेम होता है। उन फौजियों पर लिखा है हो सरहद पर पहरा देते हैं और उनकी वजह से हम चैन से सो पाते हैं।
पत्रिकाः सभी बच्चे शिक्षित हों, सरकार इसके लिए क्या करे?
हृदेश चौधरीः मैं 500 बच्चों को साक्षर कर चुकी हूं। यह वह समुदाय है, जिसे सरकार को योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। हमने घुमंतू पाठशाला के माध्यम से पढ़ाने अलावा स्कूल भी भेजते हैं। सरकार इस तरह की संस्थाओं को बढ़ावा दे।
पत्रिकाः क्या आपको ऐसा लगता है कि बहुत बड़े हो गए हैं। बहुत काम कर लिया है?
हृदेश चौधरीः ऐसा भाव नहीं है। समाज हमें नहीं, हमारे कार्यों को सम्मानित करता है। इससे दिल को खुशी होती है।
Updated on:
18 Feb 2020 10:30 am
Published on:
17 Feb 2020 05:00 pm
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