अलवर के शिशु चिकित्सालय व जनाना अस्पताल मेंं मिलाकर यहां प्रतिदिन 100 बच्चे रहते हैं इनमें कुछ तो ऐसे होते हैं जो अभी इस दुनिया में आए हैं। दुनिया में आते ही ऐसे बच्चों को वाहनों और बैंड बाजों व डीजे का शोर सुनाई पड़ता है। सभी बड़े महानगरों व शहरों में अस्पताल व शिक्षण संस्थाओं वाले क्षेत्र को साइलेंस जोन घोषित किया हुआ है। लेकिन प्रशासन ने यहां शोर कम कराने के लिए पुख्ता कार्रवाई नहीं की है।
यह कहते हैं लोग जनाना अस्पताल में भर्ती महिलाओं ने बताया कि यहां से प्रतिदिन काफी नवजात शिशुओं और प्रसव के बाद महिलाओं को छुट्टी मिलती है। पहले तो उन्हें अस्पताल में ही शोर सुनाई देता है। जैसे ही वो बाहर निकलते हैं तो उनके कानों में इतना शोर सुनाई पड़ता है कि वे चौक जाते हैं। महिलाओं ने बताया कि इस क्षेत्र में इतना शोर होता है कि वे अंदर तक सुनाई पड़ता है। इस क्षेत्र को पूरी तरह ध्वनि प्रदूषण रहित बनाना चाहिए। इसके लिए प्रशासन को उपाए करने चाहिए।
यह कर सकते हैं उपाए मनोरोग चिकित्सक डॉ. ओ. पी. गुप्ता ने बताया कि अस्पताल वाले क्षेत्र को साइलेंस जोन घोषित करना चाहिए और इसके संकेतक लगाने चाहिए। इस क्षेत्र में प्रेशर हॉर्न बजाने वाले वाहन चालकों पर कार्रवाई होनी चाहिए, जिससे इस क्षेत्र में शोर कम से कम हो। शोर चिकित्सकों के लिए भी अस्वास्थ्यकर वातावरण बनाता है। यह एकाग्रता को भंग करता है। इस क्षेत्र में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाए जिससे ध्वनि प्रदूषण कम हो सके।
यह कहते हैं चिकित्सक शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.सोमदत्त गुप्ता का कहना है कि अस्पताल क्षेत्र में वाहनों व अन्य साधनों से शोर बहुत अधिक होता है जिसके कारण शिशुओं के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस क्षेत्र में शोर कम करने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए।